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________________ पन्चेन्द्रिय-पदम जैन पुराणकोश : २०९ रथ और पैदल) की गणना करने के लिए निर्दिष्ट आठ भेदों में यह प्रथम भेद है । पपु० ५६.२-६ पत्र-रचना-कपोलों पर की जानेवाली पत्र-रचना। यह गोरोचन और कुंकुम से की जाती थी। मपु० ७.१३४ पद-धु तज्ञान के बीस भेदों में पांचवां भेद । यह अर्थ पद, प्रमाणपद और मध्यमपद के भेद से तीन प्रकार का होता है। एक से सात अक्षर तक का पद अर्थपद, आठ अक्षररूप प्रमाणपद और सोलह सो अठासी अक्षर का मध्यमपद होता है। अंगों तथा पूर्वो की पद-संख्या इसी मध्यमपद से होती है । हपु० १०.१२-१३, २२-२५ पदगोष्ठी-वैयाकरणों के साथ व्याकरण सम्बन्धी चर्चा । मपु० १४. पवज्ञान-व्याकरण ज्ञान । इसे पद-विद्या भी कहते हैं। मपु० १६. . हैं और पुद्गल संख्यात, असंख्यात तथा अनन्त प्रदेशी हैं। आकाश अनन्त प्रदेशी है । काल एक प्रदेशी है। उसके बहुप्रदेशरूप काय न होने से उसे अस्तिकायों में सम्मिलित नहीं किया जाता। इन पाँच द्रव्यों में काल को जोड़ देने से द्रव्य छः हो जाते हैं। मपु० २४.९०, वीवच०१६.१३७-१३८ पंचेन्द्रिय-स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु और श्रोत्र इन पाँच इन्द्रियों से युक्त जीव । मपु० ३६.१३०, पपु० १०५.१४७-१४९ पंचोदुम्बर-बड़, पीपल, पाकर, ऊमर और अंजीर । इनका त्याग आजीवन होता है । मपु० ३८.१२२ पक्ष-(१) व्यवहार काल का एक भेद । पन्द्रह अहोरात्र (दिनरात्र) के समय को पक्ष कहते हैं । प्रत्येक मास में दो पक्ष होते हैं-कृष्णपक्ष और शुक्लपक्ष । मपु० ३.२१, १३.२, हपु० ७.२१ (२) षट्कर्म जनित हिंसा-दोषों की शुद्धि का प्रथम उपाय । मैत्री, प्रमोद, कारुण्य और माध्यस्थ्य भाव से समस्त हिंसा का त्याग करना पक्ष कहलाता है । मपु० ३९.१४२-१४६ पटच्चर-मध्य देश । तीर्थंकर महावीर और नेमिनाथ की विहारभूमि । हपु० ३.३१, ११.६४, ५९.११० पटवास-वस्त्रों को सुवासित करनेवाला चूर्ण । मपु० १४.८८ पटविद्या-विषापहारिणी गारुडी-विद्या । मपु० २४.१,३८.२ पटह-चर्म से मढ़ा हुआ नगाड़ा । यह आदिपुराण कालीन एक वाद्य है। इसे डंडों से बजाया जाता है । मपु० २३.६३ पटांशक-कमर में बांधा जानेवाला रेशमी वस्त्र । मपु० ११.४४ पट्टबन्ध-राज्याभिषेक के समय जिसका राज्याभिषेक होना है उसके सिर पर बाँधा जानेवाला एक अलंकरण-मुकुट । मपु० १६.२३३ पणव-एक पुष्करवाद्य । इसकी ध्वनि मधुर और गम्भीर होती है। मपु० २३.६२, हपु० ३१.३९ पण्डित-राजा धृतराष्ट्र और उसकी रानी गान्धारी का चवालीसा पुत्र । पापु०८.१९८ पण्डितमरण-भक्तप्रत्याख्यान समाधिमरण का एक भेद । इसे चारित्र पूर्वक मरण भी कहते हैं । ऐसे मरण से जीव स्वर्ग प्राप्त करता है। पपु० ८०.२०८ पण्डिता-पुण्डरीकिणी नगरी के राजा वज्रदन्त की पुत्री श्रीमती की धाय । यह यशोधर योगीन्द्र के शिष्य गुणधर से दीक्षित हो गयी थी। मपु० ६.५८-६०, १०२, ८.८६ पण्य-लोकपाल सोम का नन्दनवन की पूर्व दिशा में स्थित एक भवन । हपु० ५.३१५, ३१७ पतंगक-वैशाली नगर के राजा चेटक और उसकी रानी सुभद्रा के दस पुत्रों में आठवाँ पुत्र । मपु० ७५.३-५ पति-सौधर्मेन्द्र देव द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१४१ पत्तन-(१) समुद्रतटवर्ती नगर । मपु० १६.१७२ (२) विन्ध्याचल पर स्थित एक देश । हपु० ११.७४ पत्ति-सेना का एक घटक । इसमें एक रथ, एक हाथी, पांच पैदल और तीन घोड़े होते हैं । अक्षोहिणी सेना के चतुर्विध अंगों (हाथी, घोड़े, २७ पदशास्त्र-स्वयम्भू वृषभदेव द्वारा निर्मित सौ से अधिक अध्यायों से युक्त अति गम्भीर व्याकरण शास्त्र । मपु० १६.११२ पदसमास-श्रु तज्ञान के बीस भेदों में छठा भेद । इस समास से पूर्व समास पर्यन्त समस्त द्वादशांग श्रुत स्थित है। हपु० १०.१२-१३, २६ पदातिसेना-सेना को सात कक्षाओं में एक कक्षा । इसमें सैनिक पैदल होते थे। मपु० १०.१९८-१९९ पवानुसारिणी-ऋद्धि-एक ऋद्धि । इससे आगम का एक पद सुनकर पूर्ण आगम का बोध हो जाता है। परभव सम्बन्धी गमनागमन की भी जानकारी इससे प्राप्त हो जाती है। ऐसी ऋद्धियाँ मुनियों को प्राप्त होती हैं । मपु० २.६७, ११.८०-८१, हपु० १८.१०७ पदार्थ-सामान्यतः जीव और अजीव के भेद से द्विविध । तत्त्वों में पुण्य और पाप के संयोग से ये नौ प्रकार के हो जाते हैं। इनकी यथार्थ श्रद्धा और ज्ञान से सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञान हो जाते हैं। मपु० २.११८, ९.१२१, २४.१२७, वीवच० १७.२ पद्म-(१) तीर्थङ्कर सुविधिनाथ के पूर्व जन्म का नाम । पपु० २०. २०-२४ (२) एक सरोवर । कुम्भकर्ण के विमोचन का आदेश राम ने यहीं दिया था। मपु० ६३.१९७, पपु० ७८.८-९ (३) नव निधियों में पाँचवीं निधि । इससे रेशमी सूती आदि सभी प्रकार के वस्त्र तथा रत्न आदि इच्छित वस्तुएँ प्राप्त होती हैं । मपु० ३७.७३, ७३, ७९, ३८.२१, हपु० ११.१२१, ५९.६३, दे० नवनिधि (४) सौमनस नगर का राजा। इसने तीर्थङ्कर सुमतिनाथ को आहार दिया था । मपु० ५१.७२ (५) वसुदेव तथा रानी रोहिणी का पुत्र । यह नवम बलभद्र था । मपु०७०.३१८-३१९ (६) वसुदेव और पद्मावती का पुत्र । यह पद्मक का अग्रज था। हपु० ४८.५८ (७) कृष्ण की पटरानी लक्ष्मणा का बड़ा भाई। यह सुप्रकारपुर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016061
Book TitleJain Puran kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year1993
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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