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________________ तटिक-त्याग के त्याग का निश्चय इसी पर्वत पर किया था तथा यहीं मुनिदीक्षा ली थी। हपु० ६३.७२-७४, पापु० २२.९९ तुरिक-तुट्यंग प्रमितायु में चौरासी लाख का गुणा करने से प्राप्त वर्ष संख्या। मपु० ३.१०४, २२४ अपरनाम तुट्य और तुटिकाब्द । हपु० ७ २८ तुट्य-चौरासो लाख तुट्यंगों का एक तुट्य होता है। हपु० ७.२८ तुट्यंग-चौरासी लाख कमल प्रमाण काल । मपु० ३.२२४ तुम्बुरु-गान विद्या के ज्ञाता देव । पपु० ३.१७९, १८०, हपु०७.१५८, १०.१४० तुरीय चारित्र-सूक्ष्मसाम्पराय चारित्र । यह संज्वलन लोभ का अत्यन्त मन्द उदय होने पर दशम गुणस्थान में होता है । मपु० ५४.२२५ तुरुष्क-वृषभदेव के समय का भरतक्षेत्र के पश्चिम का एक देश । इसको रचना इन्द्र ने की थी। यहाँ के घोड़े प्रसिद्ध थे। मपु० १६. १५६, ३०.१०६ तुर्यकल्याण-ज्ञानकल्याणक । मपु० ६१.४३ तुर्यगुणस्थान-चतुर्थ गुणस्थान-अविरत सम्यग्दृष्टि । मपु० ५४.७७ तुर्यध्यान-शुक्लध्यान-व्युपरतक्रियानिवर्ति । मपु० ४८.५२ तुलाकोटि-नूपुर । इसमें घुघरू लगे होते है । मपु० ९.४१ तुलामान-पल, छटांक, सेर आदि का तौल प्रमाण । पपु० २४.६१ तुलिंग-भरतखण्ड के मध्य का एक देश । हपु० ११.६४ ।। तुषित-ब्रह्मलोक में निवास करनेवाले श्रुतज्ञान के धारक और महा ऋद्धिधारी लोकान्तिक देव । मपु० १७.४७-५०, हपु० ५५.१०१, वीवच० १२.२-८ तूणीगति–एक महाशैल । जम्बूमाली मुनि यहीं साधना करके अहमिन्द्र ___ हुए थे । पपु० ८०.१३७-१३८ तूर्य-एक सुषिर वाद्य । यह मंगल-वाद्य है । मरुदेवी को जगाने के लिए ___ इसका उपयोग किया गया था। मपु० १२.२०९ तूर्याग-भोगभूमि के वाद्य-प्रदाता कल्पवृक्ष । मपु० ३.३९, हपु० ७. ८०-८१, ८४, वीवच० १८.९१-९२ तुणपिंगल-भरतक्षेत्र में चारणयुगल नगर के राजा सुयोधन की पटरानी अतिथि का बड़ा भाई। यह पोदनपुर के राजा बाहुबली का वंशज, सर्वयशा रानी का पति और मधुपिंगल का जनक था। मपु० ६७. २१३-२१४, २२३-२२४ तृणबिन्दु-अयोध्या के राजा अयोधन की रानी दिति का भाई । यह __ चन्द्रवंशी राजा था । हपु० २३.४७,५२ तृतीय काल-सुषमा-दुःषमा काल । हपु० १.२६ तृणस्पर्श-मुनि-चर्या के बाईस परीषहों में एक परीषह । इसमें मुनि सूखे कठोर तृण आदि से उत्पन्न वेदना को सहन करते हैं। मपु० ३६.१२३ तृषा-परोषह-तृषा जनित वेदना को सहना। मपु० ३६.११६ इसमें पानी पाने की तीव्र अभिलाषा होने पर तथा जलाशय आदि साधनों की उपलब्धि होने पर भी नियम आदि के निर्वाह हेतु जल का ग्रहण जैन पुराणकोश : १५५ नहीं किया जाता, तृषा से उत्पन्न वेदना को विशुद्ध परिणामों से आमरण सहन किया जाता है । मपु०७६.३६६-३६९ । तेज:सेन राजा समुद्रविजय का पुत्र । यह अरिष्टनेमि का छोटा भाई ___ था । हपु० ४८.४४ तेजस्कायिक-अग्निकायिक एकेन्द्रिय जीव । इनको कुयोनियाँ सात लाख, कुलकोटियाँ तीन लाख तथा आयु प्रायः तीन दिन की होती है । हपु० १८.५७, ५९, ६५ तेजस्वी-(१) वृषभदेव का गणघर । हपु० १२.५८ (२) आदित्यवंशी राजा प्रभूततेज का पुत्र। यह तपन का जनक था । इसने निर्ग्रन्थव्रत धारण कर लिया था । पपु० ५.४-१० तेजोमय-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.२०५ तेजोराशि-(१) सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.२०५ (२) वृषभदेव का सठवाँ गणधर । मपु० ४३.६३, हपु० १२.६६ तेजस-जीव के पाँच प्रकार के शरीरों में तीसरे प्रकार का शरीर । यह अनादिकाल से जीव के साथ जुड़ा हुआ है । यह औदारिक वैक्रियिक ___ और आहारक शरीरों से सूक्ष्म होता है । पपु० १०५.१५३ तैतिल-अश्वोत्पादन में प्रसिद्ध एक देश । इसकी स्थिति भरतखण्ड के ___सिंध्य देश के पास थी। मपु० ३०.१०७ तेरश्चिक-वैडूर्य पर्वत के पास का पर्वत । भरत की सेना इस पर्वत को पार करके वैडूर्य पर्वत पर पहुंची थी। मपु० २९.६७ तैला--भरतक्षेत्र के आर्यखण्ड में दक्षिण की एक नदी । भरतेश की सेना यहाँ आयी थी। मपु० २९.८३ तोवयवाहन-चन्द्रवाल नगर के राजा पूर्णधन का पुत्र । इसका विवाह किन्नरगीतपुर के राजा रतिमयूख की कन्या सुप्रभा से हुआ था। यह महारक्ष का पिता था। अन्त में यह पुत्र को राज्य-भार सौंपकर अजित तीर्थंकर के निकट दीक्षित हो गया था। पपु० ५.७६-७७, ८७-८८,१७९-१८३,२३९-२४० तोमर-यादवों का पक्षधर एक नृप । हपु० ५०.१३० तोयधारा-नन्दनवन की निवासिनी दिक्कुमारी देवी । हपु० ५.३३३ तोयस्तम्भिनी-जल का स्तम्भन करनेवाली एक विद्या। रावण ने यह विद्या सिद्ध की थी । पपु० ७.३२८ तोयावली-(१) लंका द्वीप में स्थित एक देश । पपु० ६.६६-६८ (२) भानुरक्ष के पुत्रों द्वारा बसाया गया एक नगर । पपु० ५.. ३७३-३७४ त्याग-(१) तीर्थकर प्रकृति की सोलह कारण-भावनाओं में एक भावना । इसमें औषधि, आहार, अभय और शास्त्र का दान किया जाता है । मपु० ६३.३२४, हपु० ३४.१३७ . (२) धर्मध्यान सम्बन्धी उत्तम क्षमा आदि दस भावनाओं में एक भावना। इसमें विकार-भावों का त्याग किया जाता है । मपु० ३६. १५७-१५८ (३) दाता का एक गुण-सत्पात्रों को दान देना। यह आहार, Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016061
Book TitleJain Puran kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year1993
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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