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________________ १५० : जैन पुराणकोश ज्योतिर्वन-तक्षक ज्योतिर्वन-विजयाध पर्वत का एक वन । यहाँ पोदनपुर का राजा सुतारा ज्वलनप्रभा-एक नागकन्या । यह वसुदेव के पास राजा एणीपुत्र की के साथ विहार करने आया था। मपु० ६२.२२८,७१.३७० पुत्री प्रियंगुसुन्दरी के विवाह का प्रस्ताव लेकर आयी थी। हपु० ज्योतिर्वेगा--अशनिवेग विद्याधर की माता । अशनिवेग राजपुर के स्वामी २९.२०-२१, ५६-६० स्तमितवेग का पुत्र था। मपु० ४७.२९, हपु० ३.१३५ ज्वलनवेग-विजयाध पर्वत की दक्षिणश्रेणी के किन्नरोद्गीत नगर का ज्योतिश्चक्र-नक्षत्रों का समूह । ये प्रकाश से युक्त हैं और सदा आकाश राजा अचिमाली और उसकी रानी प्रभावती का पुत्र । पिता ने इसे में रहते हैं । मपु० ३.८५, १३.१६६ ।। राज्य देकर दीक्षा ले ली थी। इसकी रानी का नाम विमला और ज्योतिष्क-चतुर्विध देवों में एक प्रकार के देव । ये उज्ज्वल किरणों से पुत्र का नाम अंगारक था । इसने भी अपने भाई अशनिवेग को राज्य युक्त हैं और पाँच प्रकार के हैं-ग्रह, नक्षत्र, चन्द्र, सूर्य और तारे । देकर दीक्षा ले ली थी। हपु० १९.८०-८४ तीर्थंकरों का जन्म होते ही इन देवों के भवनों में अकस्मात् सिंहगर्जना ज्वलितवेगा-विजय नामक व्यन्तर देव की व्यन्तरी । हपु० ६०.६० होने लगती है। इनका निवास मध्यलोक के ऊपर होता है। ये मेरु ज्वलिताक्ष–इन्द्र विद्याधर का एक पक्षधर देव । इसने देवासुर संग्राम पर्वत की प्रदक्षिणा देते हुए निरन्तर गतिशील रहते हैं । इनके विमानों में भाग लिया था । पपु० १२.२०० में जिनालय और जिनालयों में हेम-रलमयी जिन प्रतिमाएं रहती है । इन देवों की उत्कृष्ट स्थिति कुछ अधिक एक पल्य तथा जघन्य स्थिति पल्य के आठवें भाग प्रमाण होती है। मपु० ७०.१४३, ७२. शमला-राम के समय का ताडना से बजनेवाला एक वाद्य । पपु० ४७, पपु० ३.८१-८२, १५९-१६३, १०५.१६५, हपु० ३.१४०, ५८.२७ ३८.१९, वीवच० ११.१०१-१०२ सझर-राम के समय का ताडना से बजनेवाला एक वाद्य । पपु० ज्योतिष्पटल-यह पृथिवी तल से सात सौ नब्बे योजन की ऊँचाई से ५८.२८ नौ सौ योजन की ऊंचाई तक एक सौ दस योजन में स्थित है। यह झप-(१) गर्भावस्था में तीर्थंकर को माता द्वारा देखे गये सोलह घनोदधिवातवलय पर्यन्त सब ओर फैला है। सबसे नीचे तारा-पटल स्वप्नों में एक स्वप्न-मीन-युगल । पपु० २१.१२-१४ है । उससे दस योजन ऊपर सूर्य पटल, उससे अस्सी योजन ऊपर चन्द्र (२) पाँचवीं पृथिवी (धूमप्रभा) के तृतीय प्रस्तार का इन्द्रक पटल, उससे चार योजन ऊपर नक्षत्र-पटल, उससे चार-योजन ऊपर बिल । इसकी चारों महादिशाओं में अट्ठाईस और विदिशाओं में बुध पटल और उससे तीन-तीन योजन ऊपर चलकर क्रम से शुक, चौबीस कुल बावन श्रेणिबद्ध बिल है। इसका विस्तार छ: लाख गुरु, मंगल और शनि ग्रहों के पटल है । हपु० ६.२-६ पचास हजार योजन है । इसकी जघन्य स्थिति भ्रम इन्द्रक की उत्कृष्ट ज्योतिष्प्रभ-विजयार्ध पर्वत की दक्षिणश्रेणी के कालकूट नगर के राजा स्थिति के समान तथा उत्कृष्ट स्थिति चौदह सागर और एक सागर कालसंवर के विद्यु दंष्ट्र आदि पांच सौ पुत्रों में सबसे छोटा पुत्र । के पांच भागों में एक भाग प्रमाण होता है। यहाँ के नारकी सौ प्रद्युम्न ने इसे कालसंबर को यह समाचार देने को भेजा था कि धनुष ऊंचे होते हैं। हपु० ४. ८३.१४०, २११, २८७-२८८,३३४ उसके सभी पुत्रों को पाताल-मुखी वापी में औंधे मुह लटका दिया गया है। मपु० ७२.५४-५५, १२४-१२६ ज्योतिष्मती-विश्वावसु की रानी, शिखी की जननी । पपु० १२.५५ टंक-दशानन का पक्षधर एक नृप । पपु० १०.३६-३७ ज्वर-रावण का एक योद्धा । इसने राम की सेना के विरुद्ध युद्ध किया ___टंकण-एक देश । यहाँ रुद्रदत्त और चारुदत्त अपने भ्रमणकाल में आये था। पपु० ६२.२-४ थे। हपु० २१.१०३ ज्वलज्जलनसप्रभ-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१९६ ज्वलन-वसुदेव की रानी श्यामा का ज्येष्ठ पुत्र । यह अग्निवेग का डमर-रावण का पक्षधर एक योद्धा । पपु० ५७.५१ उम्बर-रावण का एक सामन्त । पपु० ५७.५१ अग्रज था। हपु० ४८.५४ डिण्डि-रावण का एक सामन्त । पपु० ५७.५१ ज्वलनजटो-विजयाध पर्वत की दक्षिण श्रेणी के रथनपुर नगर का विद्याधर राजा । इसने विजयाध पर्वत के ही द्य तिलक नामक नगर डिण्डिम-रावण का एक योद्धा । पपु० ५७.५१ के राजा विद्याधर चन्द्राभ की पुत्री वायुवेगा के साथ विवाह किया डिम्ब-रापण का पक्षधर एक नृप । पपु० १०.३६ था। यह एक भार्या व्रतधारी था। इन दोनों के अर्ककीर्ति नाम का पुत्र और स्वयंप्रभा नाम को पुत्री हुई थी। पुत्री का पिवाह इसने तक्ष-शिलापट । चक्रवर्ती का एक सजीव रत्न । मपु० ३७.८४ प्रथम नारायण त्रिपृष्ठ से किया था । अमिततेज इसका पौत्र और तक्षक-(१) खदिर अटवी की एक शिला। ज्योतिर्दैव धूमकेतु ने सुतारा पौत्री थी। मपु० ६२.२५, ३०, ४१, १५१-१५२, पापु० प्रद्य म्न को इसी के नीचे दबाया था। मपु० ७२.४७-५३ ४.१२, वीवच० ३.७१-९५ (२) एक नागदेव । खण्डकवन में अर्जुन द्वारा छोड़े गये अग्नि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016061
Book TitleJain Puran kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year1993
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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