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________________ चन्द्रप्रभा-चन्द्रानना चन्द्रप्रभा-(१) दीक्षाभूमि खण्डवन पहुँचने के लिए तीर्थकर महावीर की इस नाम की पालकी । इसे सर्वप्रथम भूमिपालों ने उठाया था। वे इसे लेकर सप्त पद चले थे। इसके बाद विद्याधर इसे लेकर सप्त पद चले और अन्त में सभी देवगण इसे आगे ले गये थे। मपु०७४. २९९-३०२, पापु० १.९, वीवच० १२.४३-४७ (२) चन्द्रदेव की देवी । हपु० ६०.१०८ चन्द्रभद्र-मथुरा नगरी का राजा। इसकी दो रानियाँ थीं-धरा और कनकप्रभा । धरा से इसके आठ पुत्र हुए थे-श्रीमुख, सन्मुख, सुमुख, इन्द्रमुख, प्रभामुख, उपमुख, अर्कमुख और अपरमुख । दूसरी रानी कनकप्रभा से अचल नाम का एक पुत्र हुआ था। पपु० ९१.१९-२१ चनभाग्या-कांचनस्थान के राजा कांचनरथ और उसकी रानी शतह्रदा की द्वितीय पुत्री। यह मन्दाकिनी की अनुजा और मदनांकुश की भार्या थी । पपु० ११०.१, १९ चन्द्रमण्डल–देवगीतपुर नगर का निवासी । इसकी पत्नी का नाम सुप्रभा और उससे उत्पन्न पुत्र का नाम चन्द्रप्रतिम था । इसी चन्द्रप्रतिम ने लक्ष्मण के शक्ति लग जाने पर राम को उसके निवारण का उपाय बताता था । पपु० ६४.७, २१-३१ चन्दमण्डला-रावण की अठारह हजार रानियों में एक रानी। पपु. ७७.१२ चन्द्रमति-वीतशोका नगरी के राजा मेरुचन्द्र की रानी। यह कृष्ण की पटरानी और गौरी की जननी थी। हपु० ६०.१०३, १०४ चन्द्रमती-राजा रतिप्रेण की रानी। यह चित्रांगद की जननी थी। मपु० १०.१५१ चन्द्रमरीचि-राम का सहायक एक विद्याधर राजा। यह बड़ा उत्साही वीर था । अनेक विद्याधर राजा इसके साथ थे । पपु० ५४.३२ चन्द्रमाल-पुष्कराध के पश्चिम विदेह का एक वक्षारगिरि । मपु० ६३.२०४, हपु० ५.२३२ चन्द्रमाला-राजपुर नगर-निवासी कनकतेज वैश्य की पत्नी, सुवर्णतेज की जननी । मपु० ७५.४५०-४५३ चन्द्रयश-जरासन्ध के चक्रव्यूह को भंग करने के लिए वसुदेव द्वारा निर्मित गरुड़ व्यूह में सम्मिलित एक नृप । इसकी सेना में साठ हजार रथ थे । हपु० ५०.१२८-१२९ चन्द्ररथ-(१) विद्याधर नमि की वंश परम्परा से सम्बद्ध एक नृप । यह रत्नचिह्न का पुत्र और वनजंघ का पिता था। पपु० ५.१७, हपु० : १३.२१ (२) राजा इन्द्र का पुत्र, चक्रधर्मा का पिता । पपु० ५.५० चन्द्ररश्मि-राम के पक्ष का एक योद्धा-विद्याधर । यह बहरूपिणी विद्या की साधना में रत रावण को कुपित करने के लिए उसके निकट गया था । पपु० ७०.१२-१६ चन्द्रलेखा-दधिमुख नगर के राजा गन्धर्व और उसकी रानी अमरा की ज्येष्ठ पुत्री। यह अपनी दोनों छोटी बहिनों विधु प्रभा और तरंगमाला के साथ विद्यासिद्धि में संलग्न थी। पूर्व वैर वश अंगारकेतु जैन पुराणकोश : १२३ विद्याधर ने इनके ऊपर घोर उपसर्ग किये थे । इन्होंने उपसर्गों को सहन किया जिससे छः वर्ष से भी अधिक समय में सिद्ध होनेवाली वह विद्या बारह दिन में ही सिद्ध हो गयी। पपु० ५१.२५-२६, ३७-४०, ४७-४८ चन्द्रवती-सिन्धु देश के वीतभय वीतशोकपुर-नगर के राजा मेरुचन्द्र की रानी। यह कृष्ण की पटरानी गौरी की जननी थी। मपु० ७१. ४३९-४४१, हपु० ४४.३३-३६ (२) चन्द्र देव की देवी । मपु० ७१.४१८ (३) हेमपुर के राजा हेम विद्याधर और उसकी रानी भोगवती की पुत्री। यह माली विद्याधर से विवाहित थी । पपु० ६.५६४-५६५ चन्द्रवर्द्धम-एक विद्याधर। इसने सागरावर्त धनुष चढ़ाने के कारण __ लक्ष्मण को अपनी अठारह कन्याएं दी थीं। पपु० २८.२४७-२५० चन्द्रवर्मा-कृष्ण का एक पुत्र । इसने जरासन्ध युद्ध में अपने कुल की __रक्षा की थी। हपु० ४८.७१, ५०.१३२ चन्द्रशेखर-(१) विद्याधर वंशज एक नृप। यह चन्द्र का पुत्र और इन्द्र का पिता था । पपु० ५.५० (२) राजा के सेवक विशालाक्ष विद्याधर का पुत्र । अर्जुन ने वनवास के समय इसे पराजित कर अपना सारथी बनाया था। इसके कहने से अर्जुन विजयार्घ पर गया और इन्द्र के शत्रुओं का विनाश करके उसे शत्रु रहित किया। पापु० १७.५०, ३३-३८,५५-५६, ६०-६१, चन्द्रसेन-इस नाम के एक गुरु (मुनि)। इनसे चन्द्र कीर्ति ने दीक्षा ली थी। चन्द्रकीर्ति का जीव ही सभ्राट् वज्रदन्त हुआ। मपु० ७.१० चन्द्रहास-एक खड्ग । रावण ने इसे साधनापूर्वक सिद्ध किया था। बालि मुनि के समझाने पर रावण ने इसे विरक्त भाव से त्याग भी दिया था पर युद्ध के कारण पुनः प्राप्त किया था। लक्ष्मण द्वारा चलाये गये सुदर्शन चक्र पर रावण ने इसी खड्ग से प्रहार किया था । पपु० ८.३६-३७, ९.१४५, १७५, ७६.३२ चन्द्रांशु-राम का एक सिंहरथारोही सामन्त । पपु० ५८.१०-११ चन्द्राचार्य-पंचमकाल के अन्तिम आचार्य । ये इसी काल के अन्तिम मुनि वीरांगज के गुरु थे । मपु० ७६.४३१-४३३ चन्द्रादित्य-पुष्करद्वीप का एक नगर । प्रकाशयश का पुत्र जगा ति यहां का राजा था। पपु० ८५.९६ चन्द्रानन-चन्द्रपुर के राजा चित्राम्बर और उसकी रानी पदमश्री का पुत्र । यह आदित्यपुर के राजा विद्यामन्दर की पुत्री श्रीमाला के स्वयंवर में गया था । पपु० ६.४०२-४०६ चन्द्रानन्द-कृष्ण के पक्ष का एक राजकुमार । इसने कौरव-पाण्डव युद्ध में कौरवों का वध किया था। हपु० ५०.१२५ चन्द्रानना-(१) पदमिनीखेट-नगर-निवासी सोमशर्मा और उसकी भार्या हिरण्यलोमा की कन्या । इसका विवाह एक निमित्तशानी से हुआ था । जो पहले मुनि था। मपु० ६२.१९२, पापु० ४.१०७-१०८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016061
Book TitleJain Puran kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year1993
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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