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________________ -१२ आदरणीय डॉ० कोठियाजी किसी कारणवश नहीं आ सके । प्रथम विचारविमर्श में मैं तथा निम्न महानुभाव सम्मिलित हुए-- १. श्री ज्ञानचन्द्र खिन्दूका तत्कालीन सभापति २. श्री कपूरचंद पाटनी तत्कालीन मंत्री ३. श्री मोहनलाल काला सदस्य ४. डॉ. गोपीचंद पाटनी सदस्य ५. डॉ. नेमीचंद जैन, इन्दौर आमंत्रित विद्वान् ६. डॉ० कमलचंद सौगानी, उदयपुर ७. डॉ० गोकुलचंद जैन, वाराणसी इसी समय यह भी निर्णय लिया गया कि जब तक सभी कार्ययोजनाओं से सम्बन्धित विद्वानों की नियुक्तियाँ नहीं हो जाती है तब तक 'जैन पुराण कोश' का कार्य प्रारम्भ करा दिया जाय । इसके पश्चात् 'जैनविद्या संस्थान समिति' की रचना की गई और डॉ. गोपीचंद पाटनी को इस समिति का संयोजक चुना गया। डॉ० कमलचन्द सोगानी ने संस्थान समिति में आदिपुराण की संज्ञाओं का कोश तैयार कराये जाने का प्रस्ताव रखा जिसे सर्वसम्मति से स्वीकार कर लिया गया। डॉ. गोपीचंद पाटनी के संयोजकत्व में समिति ने सभी प्राचीन प्रमुख जैन पुराणों को इस योजना में सम्मिलित करने का निर्णय लिया । फलस्वरूप १. पद्मपुराण, २. महापुराण, ३. हरिवंशपुराण, ४. पाण्डवपुराण, ५. वीर वर्धमान चरित इन पांच पुराणों का एतदर्थ चयन किया गया। ___ इस योजना की क्रियान्विति के लिए दो विद्वानों को नियुक्त करने का निर्णय हुआ जिसके अनुसार सितम्बर १९८२ में सर्वप्रथम डॉ. कस्तूरचन्द 'सुमन' की और इसके पश्चात् अक्टूबर १९८२ में डॉ० वृद्धिचन्द जैन की नियुक्ति की गई। डॉ० वृद्धिचन्द जैन आरम्भिक कुछ ही कार्य कर पाये थे कि उन्हें पदमुक्त होना पड़ा। फलतः इस योजना का समस्त कार्य डॉ. कस्तूरचन्द 'सुमन' को करना पड़ा । यह कार्य उनके आठ वर्ष के धैर्यपूर्ण कठोर परिश्रम का फल है । कोश-रचना-पद्धति __इस विशालकाय जैन पुराण कोश के लिए सर्वप्रथम स्वीकृत पाँचों पुराणों के ५२७०५ श्लोकों का मनोयोगपूर्वक अध्ययन किया गया। श्लोकों में प्राप्त संज्ञाओं तथा पारिभाषिक शब्दों के नाम पृथक्-पृथक कार्डो पर लिखे गये तथा उन नामों से सम्बन्धित प्रसंग उनमें संकलित किये गये । इस प्रकार पांचों पुराणों के कार्ड तैयार हुए। इसके पश्चात् इन पांचों पुराणों के पृथक्-पृथक् कार्डों की सामग्री का सम्पादन किया गया तथा अपनी भाषा शैली में पांचों पुराणों की संकलित सामग्री से एक नया कार्ड तैयार किया गया। इस प्रकार १२६०९ नाम संकलित हुए। ये समस्त कार्ड अकारादि क्रम से संजोये गये । इन्हें टंकित कराया गया तथा टंकन के पश्चात् मूल प्रति से टंकित सामग्री का संशोधन किया गया। कोश का इतना कार्य सम्पन्न हो जाने के पश्चात् डॉ० दरबारीलाल कोठिया से निवेदन किया गया कि वे कोश के पारिभाषिक शब्दों को देखकर उसमें यथास्थान संशोधन कर दें। उन्होंने कोश की आवश्यकता व उपयोगिता समझ कर इस कार्य को श्रीमहावीरजी में रहकर सहर्ष सम्पन्न किया । तदनन्तर मैंने कोश के आरम्भ से अन्त तक के शब्दों की भाषा, विषय और एकरूपता की दृष्टि से संशोधन और समायोजन किया । इस कोश में इस योजना के लिए स्वीकृत पुराणों के अन्त में दी गई शब्दानुक्रमणिका तथा 'आदिपुराण में प्रतिपादित भारत' पुस्तक में उपलब्ध सम्बन्धित सामग्री का भी यथोचितरूप में समावेश कर लिया गया है । अध्येताओं तथा शोधार्थियों को पुराणकालीन जैन संस्कृति की जानकारी प्राप्त हो सके इस दृष्टि से कोश के अन्त में परिशिष्ट दिये गये हैं जिनमें दार्शनिक, धार्मिक, भौगोलिक और ऐतिहासिक सामग्री आ गई है। इस प्रकार प्रस्तुत कोश में मूलतः प्रथमानुयोग की विषय सामग्री का समावेश तो किया गया है किन्तु अन्य अनुयोगों की विषय-वस्तु भी इसमें द्रष्टव्य है । इस प्रकार चारों अनुयोगों के विषयों को जानने-समझने में यह कोश उपयोगी है। कोश का कार्य हो ऐसा है जिसमें पूरी सावधानी रखने के बाद भी कमियाँ रह जाती है। ये कमियाँ बाद के संस्करणों में दूर की जाती हैं। इस कोश में भी कमियों का होना सर्वथा स्वाभाविक है जो आगामी संस्करणों में दूर होती जायेंगी। Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016061
Book TitleJain Puran kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year1993
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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