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________________ ११६ : बैन पुराणकोश गौभृग-घनरय सात ऋद्धियाँ प्राप्त हो गयीं। श्रावण के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा के दिन पूर्वाह्न वेला में अंगों के तथा अपराल वेला में पूर्वो के अर्थ और पदों का इन्हें बोध हो गया। ये चार ज्ञानों के धारक हो गये। इन्होंने अंगों और पूर्वो की रचना की श्रेणिक के अनेक प्रश्नों के उत्तर भी दिये। महावीर के निर्वाण काल में ही इन्हें केवलज्ञान हो गया। केवलज्ञान होने के बारह वर्ष बाद ये भी निर्वाण को प्राप्त हुए । मपु० १.१९८-२०२, २.४५-९५, १४०, १२.२, ४३-४८,७४. ३४७-३७२, ७६.३८-३९, ११९, पपु० २.२४९, ३.११-१३, हपु० १.५६, २.८९, पापु० १.७, २.१४, १०१, वीवच० १.४१-४२, १५. ७८-१२६, १८. पूर्ण, १९.२४८-२४९ (७) एक देव । द्वारिका की रचना के लिए इसने इन्द्र की आज्ञा से समुद्र का अपहरण किया था । हपु० १.९९ (८) राजा समुद्रविजय का पुत्र । हपु० ४८.४४ (९) कृष्ण के कुल का रक्षक एक नृप । हपु० ५०.१३१ (१०) वसुदेव का कृत्रिम गोत्र । इस गोत्र को बताकर ही वह गन्धर्वाचार्य सुग्रीव का शिष्य बना था । हपु० १९.१३०-१३१ गौशृंग-पंचाग्नि तपकर्ता एक तापस । यह भतरमण वन के मध्य में ऐरावती नदी के किनारे रहता था। इसकी स्त्री का नाम शंखिका और पुत्र का नाम मृगशृंग था । मपु० ५९.२८७-२८९ गौतमी-भरतक्षेत्र स्थित सूतिका श्वेतिका नगर के अग्निभूति ब्राह्मण की भार्या । यह पुरुरवा के जीव अग्निसह की जननी थी। मपु० ७४. ७४, वीवच० २.११७-११८ गौरमण्ड-(१) विजयाध पर्वत की दक्षिणश्रेणी में स्थित एक नगर । हपु० २२.८८ (२) अदिति देवी के द्वारा नमि और विनमि को प्रदत्त विद्याओं का एक निकाय । हपु० २२.५७ गौरिक्ट-विजया पर्वत की दक्षिणश्रेणी का एक नगर । हपु० २२.९७ गौरिक-विद्याधरों की एक जाति । हपु० २६.६ गौरी-(१) विजयाध पर्वत की उत्तरश्रेणी का एक देश । मपु० ४६. १४५ (२) एक विद्या। कनकमाला ने यह विद्या प्रद्युम्न को दी थी। दिति और अदिति द्वारा नमि और विनमि को प्रदत्त विद्याओं में सोलह निकायों की एक विद्या । मपु० ६२.३९६, हपु० २२.६२, २७.१३१, ४७.६३-६४ (३) कृष्ण की सातवीं पटरानी। यह वीतशोकपुर/सिन्धु देश के वीतभय नगर के राजा मेरुचन्द्र/मेरु और उसकी रानी चन्द्रवती की पुत्री थी। इसके पूर्व यह पुन्नागपुर नगर के राजा हेमाभ की यशस्वती नामा रानी थी। मरकर यह स्वर्ग गयी और वहाँ से च्युत हो कौशाम्बी नगरी के सुमति श्रेष्ठी की धार्मिको नाम की पुत्री हुई। मरकर यह महाशुक्र स्वर्ग में जन्मी और वहाँ से च्युत हो इस पर्याय को प्राप्त हुई। मपु० ७१.१२६-१२७, ४२९-४४१, हपु० ४४. गौशील–एक देश । लवणांकुश ने यहां के राजा को पराजित किया था। पपु० १०१.८२-८६ ग्रन्थ-परिग्रह। यह दो प्रकार का होता है-अन्तरंग और बहिरंग । मपु० ६७.१३, पपु० ८९.१११ ग्रह-ज्योतिष्क देव । मपु० ३.८४ ग्रहविक्षेप-गृहों का एक राशि से दूसरी राशि पर जाना । मपु० ३.३७ ग्राम-(१) बाड़ आवृत, उद्यान और जलाशयों से युक्त अधिकतर शूद्र और कृषकों की निवासभूमि । इसके दो भेद होते हैं-छोटे ग्राम और बड़े ग्राम । छोटे ग्राम की सीमा एक कोस और बड़े ग्राम की दो कोस होती है। छोटे ग्राम में सौ घर और बड़े ग्राम में पाँच सौ घर होते हैं। मपु० १६.१६४-१६७, हपु० २.३, पापु० २.१५८, २०. १७७,२६.१०९, १२७, २९.१२९ (२) वैण और शारीर स्वर । हपु० १९.१४७-१४८ प्रामणी-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.११५ प्रास-कवल । यह एक हजार चावल प्रमाण होता है । हपु० ११.१२५ ग्राहवती-पूर्व विदेह के वक्षार पर्वतों के मध्य बहती हुई एक विभंगा नदी। यह नील पर्वत से निकलकर सीता नदी की आर बहती है। हपु० ५.२३९ प्रेवेयक-(१) अहमिन्द्र देवों की आवास भूमि । सोलह स्वर्गों के ऊपर स्थित इस नाम के नौ पटल हैं। मपु० ४९.९, पपु० १०५.१६७१७०, हपु० ३.१५० (२) स्वर्ण-रत्नजटित कण्ठहार । मपु० २९.१६७, हपु० ११.१३ मेधेयक स्तूप-वेयक विमान के आकार का समवसरण का स्तूप । हपु० ५७.१०० घंटा-ऊँची और गम्भीर ध्वनिवाला एक वाद्य । कल्पवासी और ज्योतिष्क, व्यन्तर और भवनवासी देव भी इसे मांगलिक अवसरों पर बजाते हैं। मपु० १३.१३ घटास्त्र-रावण का पक्षधर एक सामन्त । इसने अपनी सेना के साथ राम-रावण में युद्ध में भाग लिया था । पपु० ५७.५४ घटीयन्त्र-कृषि की सिंचाई का एक यन्त्र । (गृह) । मपु० १७.२४ घटोदर-रावण का पक्षधर एक सामन्त । इसने राम-रावण युद्ध में राम के पक्षधर दुर्मर्षण योद्धा के साथ युद्ध किया था । पपु० ६२.३५ घण्टाराव-घंटानाद । जिन-जन्मोत्सव सूचक चतुविध ध्वनियों में एक ध्वनि । मपु०६३.३९९ । धन-(१) इस नाम का एक शस्त्र । पपु० १२.२५८, १९.४३, ६२.४५ (२) कांसे के झांझ, मंजीरा आदि वाद्य । हपु० १९.१४२ घनकाल–वर्षाकाल, मुनियों के चातुर्मास का समय । पपु० १२३.९४ । धनगति-राम का सहायक एक विद्याधर नृप । पपु० ५४.३४-३५ घनप्रभ-लंका का एक राजा। इसकी रानी का नाम पद्मा तथा पुत्र का नाम कीर्तिधवल था । पपु० ५.४०३-४०४ धनरथ-(१) भरतक्षेत्र में महापुर नगर के राजा वायुरथ का पुत्र । इसके पिता इसे राज्य सौंपकर तपस्वी हो गये थे । मपु० ५८.८०-८१ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016061
Book TitleJain Puran kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year1993
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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