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________________ पुण्यास्रवकथाकोशम् २५६ [६-२,४३ : चित्राङ्गद आगत्य वरदत्तनामा पुत्रोऽजनि । स मणिकुण्डलः समेत्य तत्रैव विषये मण्डलिकनन्दिसेनानन्तमत्योरपत्यं वरसेनोऽभूत् । तत्रैव विषये मण्डलिकरतिसेनचन्द्रमत्योः स मनोहरदेव आगत्य चित्राङ्गदनामा सुतो जज्ञे । तद्विषय एवं मण्डलिकप्रभञ्जनचित्रमालयोः स मनोरथोऽवतोर्य शान्तमदननामा पुत्रोऽभूत् । वरदत्तादयश्चत्वारोऽपि सुविधेमित्राणि भूताः। एकदाभयघोषचक्री सुविध्यादिराजभिविमलवाहनं जिनं चन्दितुमियाय। तद्विभूतिदर्शनेन संसारसुखविरक्तो भूत्वा पञ्चसहस्रस्वपुत्रैर्दशसहस्रस्त्रीभिरष्टादशसहस्रक्षत्रियैर्दीक्षितो मुक्तिमुपजगाम । सुविध्यादयः षडपि विशिष्टाणुव्रतधारिणो जाताः। स्वायुरन्ते सुविधिः संन्यासेन मृतः सन्नच्युतेन्द्रो जशे। केशवादयः पञ्चापि दीक्षिताः । केशवोऽच्युते प्रतीन्द्रोऽ. जनि । इतरे तत्रैव सामानिका जज्ञिरे । ततोऽच्युतेन्द्र आगत्यात्रैव पूर्वविदेहे पुष्कलावतीविषये पुण्डरीकिणीशतीर्थकर कुमारवजूसेनश्रीकान्तयोरपत्यं वजनाभिर्जातः । स प्रतीन्द्रोऽवतीर्य तत्रैव कुबेरदत्तराजश्रेष्ठ यनन्तमत्योरपत्यं धनदेवोऽजनि । वरदत्तचरादिसामानिका आगत्य तयोरेव वजसेनश्रीकान्तयोरपत्यानि विजय-वैजयन्त-जयन्तापराजिता जज्ञिरे । तथा पुत्र हुआ। वह चित्रांगद ( व्याघ्रका जीव ) देव उसी देशके मण्डलीक राजा विभीषण और प्रियदत्ताके वरदत्त नामका पुत्र हुआ । वह मणिकुण्डल देव (शूकरका जीव ) स्वर्गसे च्युत होकर उसी देशके मण्डलीक राजा नन्दिसेन और रानी अनन्तमतीके वरसेन नामका पुत्र हुआ । वह मनोहर ( बंदरका जीव ) देव वहाँ से आकर उसी देशके मण्डलीक राजा रतिसेन और रानी चन्द्रमतीके चित्रांगद नामका पुत्र हुआ। वह मनोरथ देव ( नेवलेका जीव ) स्वर्गसे अवतीर्ण होकर उसी देशके मण्डलीक राजा प्रभंजन और रानी चित्रमालाके शान्तमदन नामका पुत्र हुआ। वे वरदत्त आदि चारों ही सुविधिके मित्र थे। ___ एक समय अभयघोष चक्रवर्ती सुविधि आदि राजाओंके साथ विमलवाहन जिनेन्द्रकी वन्दना करनेके लिए गया। वह उनकी विभूतिको देखकर संसारके सुखसे विरक्त हो गया। तब उसने पाँच अपने हजार पुत्रों, दस हजार स्त्रियों और अठारह हजार अन्य राजाओं के साथ दीक्षा ग्रहण कर ली। अन्तमें वह तपश्चरण करके मुक्तिको प्राप्त हुआ। उन सुविधि आदि छहोंने विशिष्ट अणुव्रतोंको धारण कर लिया था। उनमें सुविधि अपनी आयुके अन्तमें संन्यासके साथ मरणको प्राप्त होकर अच्युतेन्द्र हुआ। शेष केशव आदि पाँचों दीक्षित हो गये थे। उनमें केशव तो अच्युत कल्पमें प्रतीन्द्र हुआ और शेष चार वहींपर सामानिक देव उत्पन्न हुए । तत्पश्चात् वह अच्युतेन्द्र उक्त कल्पसे आकर इसी जम्बूद्वीपके पूर्व विदेहमें जो पुष्कलावती देश है उसके भीतर स्थित पुण्डरीकिणी नगरीके राजा तीर्थकरकुमार वज्रसेन और रानी श्रीकान्ताके वज्रनाभि नामका पुत्र उत्पन्न हुआ। वह प्रतीन्द्र भी स्वर्गसे अवतीर्ण होकर उसी नगरीमें राजसेठ कुबेरदत्त और अनन्तमतीके धनदेव नामका पुत्र हुआ। वरदत्त आदि जो सामानिक देव हुए थे वे भी स्वर्गसे च्युत होकर राजा वज्रसेन और रानी श्रीकान्ता इन्हीं दोनोंके विजय, वैजयन्त, १. ब समैत्य । २. ब नामा नंदनोऽभूत् । ३. ज प श विशिष्टानुव्रत । ४. ज प य श विषय । ५. फ ब श वैजयन्तापराजिता । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016057
Book TitlePunyasrav Kathakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Mumukshu, A N Upadhye, Hiralal Jain, Balchandra Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size10 MB
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