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________________ : ५-१, ३४ ] ५. उपवासफलम् १ १७६ देव, वत्सदेशे कौशाख्यां राजा शुभचन्द्रो देवी सुखावती पुत्र्यः स्वयंप्रभासुप्रभा - कनकप्रभा - कनक माला-नन्दा - पद्मश्री-नागदन्ताश्चेति सप्त । एवं शुभचन्द्रो सुखेन तिष्ठति । विजयार्धदक्षिणश्रेण्यां रत्नसंचयपुरेशः सुकण्ठः । स च तद्वैरिणा मेघवाहनेन तस्मान्निर्धाटितः कौशाम्या बहिर्दुर्लङ्ध्यपुरं कृत्वा तस्थौ । तेन ताः कन्या याचिताः, शुभचन्द्रेण न दत्ताः । ततस्तमवधीत् । कन्याभिरुक्तमस्मत्पिता त्वया हत इति तव शिरश्छेदकोऽस्माकं पतिरिति । तेन कारागारे निहितास्तत्र नागदत्ता कथमपि पलाय्य कुरुजाङ्गलदेशे हस्तिनागपुरेशस्वपितृव्याभिचन्द्रस्य स्वरूपमकथयत्तेनाहं तवान्तिकं प्रेषित इति । श्रुत्वा कुमारो मामं गुणवत्याः पुरं प्रेष्य विद्याः समाहूय गगनेन कौशाम्बीं गतः, तदन्तिकं दूतमयापन् । स गत्वोकवान् तस्य हे खेचर, नागकुमारादेशं शृणु - कन्या विमुच्य शीघ्रमस्मदन्तिकं प्रस्थापनीया, नोचेश्वं जानासि इत्युक्तम् । दूतं क्रुद्धः स निःसारयामास । ततो युद्धाभिलाषेण व्योम्नि तस्थौ । नागकुमारोऽपि महायुद्धे चन्द्रहासेन तं जघान । तत्पुत्रो वज्रकण्ठः शरणं प्रविवेश । तं रत्नसंचयपुरं नीत्वा मेघवाहनं हत्वा तत्र राजानं चकार । वज्रकण्ठस्यानुजा रुक्मिणी, हे देव ! वत्स देशके भीतर कौशाम्बी नामकी एक नगरी है । वहाँ शुभचन्द्र राजा राज्य करता है । रानीका नाम सुखावती है । उनके स्वयंप्रभा, सुप्रभा, कनकप्रभा, कनकमाला, नन्दा, पद्मश्री और नागदत्ता ये सात पुत्रियाँ हैं । इस प्रकारसे वह शुभचन्द्र राजा सुखसे स्थित था । परन्तु उधर विजयार्धकी दक्षिण श्रेणिमें जो रत्नसंचयपुर है उसमें सुकण्ठ नामका राजा राज्य करता था । उसे उसके शत्रु मेघवाहनने उस नगरसे निकाल दिया । तब वह कौशाम्बीपुरीके बाहिर एक अलंघ्यपुरका निर्माण करके वहाँ रहने लगा है। उसने शुभचन्द्र से उन कन्याओंकी याचना की । परन्तु उसने उसके लिए देना स्वीकार नहीं किया । इससे सुकण्ठने उसको मार डाला है । इसपर उन कन्याओंने उससे कह दिया है कि तुमने हमारे पिताको मार डाला है, अतएव जो पुरुष तुम्हारे शिरका छेदन करेगा वही हमारा पति होगा । इससे क्रोधित होकर उसने उन्हें बन्दीगृह के भीतर रख दिया । उनमें से नागदत्ता पुत्री किसी प्रकारसे भागकर हस्तिनापुरके राजा अभिचन्द्रके पास पहुँची । वह कुरुजांगल देशके अन्तर्गत हस्तिनापुरका राजा व उस नागदत्ताका चाचा है। उससे जब नागदत्ताने उक्त घटनाको कहा तब अभिचन्द्र ने मुझे आपके पास भेजा है । यह सुनकर नागकुमारने मामाको गुणवतीके [ गुणवतीको मामाके ] नगरमें भेजकर समस्त विद्याओं को बुलाया और तब वह आकाशमार्गसे कौशाम्बीपुर जा पहुँचा । वहाँ जाकर नागकुमारने सुकण्ठके पास दूतको भेजा । उसने वहाँ जाकर उससे कहा कि हे विद्याधर ! नागकुमारने तुम्हें यह आदेश दिया है कि तुम शीघ्र ही उन कन्याओं को छोड़कर मेरे पास दो, अन्यथा तुम ही जानो। दूतके इन वचनोंसे क्रोधित होकर सुकण्ठने उसे वहाँ से निकाल दिया । तत्पश्चात् वह युद्धकी इच्छासे आकाशमें स्थित हो गया । तब नागकुमारने भी उसी प्रकार आकाश में स्थित होकर महायुद्धमें उसे चन्द्रहास से मार डाला । तब उसका पुत्र वज्रकण्ठ नागकुमारकी शरण में आ गया । इससे नागकुमार उसे रत्नसंचयपुर में ले गया और मेघवाहनको मारकर वहाँका राजा बना दिया । उस समय नागकुमार वज्रकण्ठकी बहिन रुक्मिणी, अभिचन्द्र १. ब- प्रतिपाठोऽयम् । श स्वयंप्रभाकनकप्रभाकनकमालाघनश्रीनन्दा । २. ब माम । ३. ब प्रतिपाठोऽयम् । श महायुध । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016057
Book TitlePunyasrav Kathakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Mumukshu, A N Upadhye, Hiralal Jain, Balchandra Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size10 MB
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