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________________ : ५-१, ३४] ५. उपवासफलम् १ १६६ बभूव। तदवस्थां विबुध्य श्रीवर्मा इङ्गिताकारेण तौ क्षत्रियाविति शात्वा स्वगृहं प्रवेश्य गणिकासुन्दाः धात्रिकापुत्री ललितसुन्दरी व्यालाय दत्त्वा महाव्यालाय गणिकासुन्दरीमदत्त । तौ तत्र विभूत्या यावत्तिष्ठतस्तावद्विजयपुरंशो जितशत्रुः पूर्व ते कन्ये याचित्वाप्राप्य रुषा तत्पुरं' विवेष्टे । स्ववल्लभायाः सकाशात् व्यालस्तद् वृत्तान्तमवगम्य महाव्यालस्यादेशं दत्तवार तशत्रोर्बद्ध निरूपयेति । स च श्रीवर्मणो दतव्याजेन तदन्तिकं जगाम यत्किचिद्वभाषे । जितशत्रुश्चकोप, तं निर्लोठयामास यदा तदा महाव्यालस्तं दध्र तत्पट्टिकया बबन्ध निनायाग्रजस्य पादयोरपीपतत् । तेन श्वशुरस्य समर्पितः । तेन परिधानं दत्त्वा तद्देशं प्रेषितः। तौ तत्र जनविदितशौर्यो सुखेनास्थाताम् । नागकुमारस्य ख्यातिमाकर्ण्य व्यालस्तं द्रष्टुं तत्र ययौ। नीलगिरिमारुह्य वाह्यालिं गत्वा पुरे प्रविशन्तं तं ददर्श । तदैव समदृष्टिर्जशे', भालस्थं नेत्रं च नष्टम् । ततः कथितात्मस्वरूपो भृत्यो बभूव । प्रभुः स्वहस्तिनमारोप्य निनाय, द्वारे तं विसृज्यान्तः प्रविष्टः। स तत्रैव स्थितः । तदा हेरिकेण श्रीधराय निवेदितं नागकुमारोऽद्वितीयः स्वभवने आस्त इति । तदा तेन ते भृत्यास्तद्वधनार्थं कथिताः। संनद्धांस्तानागच्छतो वीक्ष्य व्यालो द्वारवासिनोsव्यालको देखकर उसके ऊपर आसक्त हो गई। श्रीवर्माने शरीरकी चेष्टासे उसके अभीष्टको जान लिया । इसलिये वह उन दोनोंको क्षत्रिय जान करके अपने घरपर ले गया। फिर उसने व्यालके लिये गणिकासुन्दरीकी धायकी पुत्री ललितसुन्दरीको देकर महाव्यालके लिये गणिकासुन्दरीको अर्पित कर दिया । इस प्रकारसे वे दोनों वहाँ विभूतिके साथ रहने लगे। उस समय विजयपुरके स्वामी जितशत्रुने आकर क्रोधसे उस नगरको घेर लिया था। उसके इस क्रोधका कारण यह था कि उसने पूर्वमें उन दोनों कन्याओंको माँगा था, किन्तु वे उसे दी नहीं गई थीं। व्यालने अपनी पत्नीसे इस वृत्तान्तको जानकर महाव्यालके लिये आदेश दिया कि जितशत्रुकी बुद्धिको देखो- उसे जाकर समझानेका प्रयत्न करो । तब वह श्रीवर्माके दूतके रूपमें जितशत्रुके पास चला गया । वहाँ जाकर उसने जो कुछ भी कहा उससे जितशत्रुका क्रोध भड़क उठा। इससे उसने महाव्यालको अपमानित किया। तब उसने उसे उसकी ही पगड़ीसे बाँध लिया और बड़े भाईके पास ले जाकर उसके पैरोंमें गिरा दिया । तब व्यालने उसे अपने ससुरके लिये समर्पित कर दिया । श्रीवर्माने उसे पोषाक ( वस्त्र ) देकर उसके देशमें वापिस भेज दिया। इस प्रकारसे व्याल और महाव्यालका प्रताप लोगोंमें प्रगट हो गया। फिर वे दोनों वहाँ सुखसे रहने लगे। ___ व्याल नागकुमारकी कीर्तिको सुनकर उसके दर्शनके लिये वहाँ गया। जब वह कनकपुरमें पहुँचा तब नागकुमार नीलगिरि हाथीपर चढ़ा हुआ बाह्य वीथीमें घूमकर नगरके भीतर प्रवेश कर रहा था । उसको देखते ही वह समदृष्टि ( दो नेत्रोंवाला ) हो गया- उसका वह तीसरा भालस्थ नेत्र नष्ट हो गया । तब वह अपना परिचय देकर उसका सेवक हो गया। नागकुमार उसे अपने हाथीके उपर बैठाकर ले गया और फिर भवनके द्वारपर छोड़कर स्वयं भीतर चला गया। वह द्वारपर ही स्थित रहा । इसी समय श्रीधरके गुप्तचरने उसे सूचना दी कि इस समय नागकुमार अकेला ही अपने भवनमें स्थित है। तब उसने नागकुमारका वध करनेके लिये उन पाँच सौ सहस्र भट सेवकोंको आज्ञा दे दो। तदनुसार वे तैयार होकर उधर आ रहे थे। उन्हें आते १. ब रुष्टात्तत्पुरं । २. प श मास स यदा। ३. प श सम्यग्दृष्टिजज्ञे । ४. पब श विस्मत्यान्तः। ५. बस्तद्धरणार्थं । २२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016057
Book TitlePunyasrav Kathakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Mumukshu, A N Upadhye, Hiralal Jain, Balchandra Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size10 MB
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