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________________ १६ पुण्यास्रव कथाकोश किया है, जिनमें संस्कृत के ग्रन्थ हैं और कन्नडके भी। अतः कोई कारण नहीं कि वे यदि नागराजकी कृतिका इतना अधिक उपयोग करते तो उसका निर्देश न करते । तीसरे, रामचन्द्रने अपने छह विषय निर्धारित करनेमें अपनी विशेष मौलिकता बतलाई है, और नागराजने उसका अनुकरण मात्र किया है, जिसमें उन्होंने सोमदेवके यशस्तिलकचम्प व पद्मनन्दि कृत पंचविंशतिके अनुसार कुछ शब्दभेद कर लिया है । चौथे, रामचन्द्रने अपने आधारभूत ग्रन्थोंका बहुत स्पष्टतासे उल्लेख किया है, जिनमें आराधना - कर्नाटक टीका व स्वयं कृत शान्तिचरितका वैशिष्टय है, जबकि उन्हीं सन्दर्भोमें नागराजके चम्पके उल्लेख, यदि है भी तो बहुत अनियमित । और पांचवें, जहां रामचन्द्रने हरिवंश पुराणका एक श्लोक उद्धृत किया है (पृ० ७४ ) वहाँ नागराजने उस श्लोकका सीधा कन्नड अनुवाद कर डाला है। यदि रामचन्द्रने नागराजकी कृतिका आधार लिया होता तो उनका उक्त श्लोकको उद्धृत करना असम्भव था । पहले बतला आये हैं कि रामचन्द्रने अपनी कृतिको अपने छह विषयोंके अनुसार छह खण्डोंमें विभाजित किया है, तथा प्रथम पाँच खण्डोंमें आठ-आठ कथायें हैं और छठे खण्डमें सोलह । नागराजको इस वर्गीकरणकी अच्छी तरह जानकारी है। तथापि उन्होंने जिस चम्पू काव्यरूपमें अपनी कतिको ढाला है उसकी आवश्यकतानसार उन्होंने बारह आश्वासोंकी योजना की है जिनमें कथाओंका समावेश निम्न प्रकार है :आश्वास पुण्य० कथा wor» १०० १२ ९-१५ १६-२० २१-२५ २६-३४ ३५-३७ ३८-४३ ४३ ( अन्तिम भाग) ४४-५० ५१-५८ यहाँ प्रथम तीन आश्वासोंमें रामचन्द्र की कथाओंका एक अष्टक पूर्ण हुआ है। आगे नागराजके वर्णनकी घटा-बढ़ी अनुसार आश्वासोंमें कथाओंको संख्याका कोई नियम नहीं रहा। ४३वों कथा दो आश्वासोंमें पल गयी है। तथापि यह मानना पड़ेगा कि नागराजने अपने आदर्शभत कथाकोशकी नीरस शैलीसे ऊपर उठकर एक श्रेष्ठ कन्नड़ चम्पू काव्यकी सृष्टि की है । (१०) ग्रन्थकार रामचन्द्र मुमुक्षु रामचन्द्र मुमुक्षुने स्वयं अपने विषयको बहुत कम जानकारी दी है। पुष्पिकाओंमें कहा गया है कि वे 'दिव्यमुनि केशवनन्दि' के शिष्य थे। अन्तिम प्रशस्तिके अनुसार (पृ० ३३७) ये केशवनन्दि कुन्दकुन्दान्वयी थे। उनकी प्रशंसामें कहा गया है कि वे भव्य रूपी कमलोंको सूर्य के समान थे, संयमी थे, मदनरूपी हाथीको सिंहके समान थे, कर्मरूप पर्वतोंके लिए वज्र थे, दिव्य-बुद्धि थे, बड़े-बड़े साधुओं और नरेशों द्वारा वन्दित थे, ज्ञानसागरके पारगामी थे और बहुत विख्यात थे। उनके धर्मिष्ठ शिष्य थे रामचन्द्र जिन्होंने महायशस्वी, वादीभसिंह महामनि पद्मनन्दिसे व्याकरण शास्त्रका अध्ययन किया। रामचन्द्र ने इस पुण्यास्त्रवकी रचना की. तथा ५७ श्लोकोंमें कथाओंका सारांश दिया । रचनाका ग्रन्थान ४५०० है। यह सब जानकारी प्रशस्तिके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016057
Book TitlePunyasrav Kathakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Mumukshu, A N Upadhye, Hiralal Jain, Balchandra Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size10 MB
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