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________________ १२ पुण्यास्रव कथाकोश १९५४ ) | आश्चर्य नहीं जो पुण्यास्रवकारने कुछ कन्नड़ रचनाओंका भी उपयोग किया हो। यह भी ध्यान देने योग्य बात है कि उन्होंने सुकुमालचरित नहीं, किन्तु सुकुमारचरित नाम कहा है । ३६-३७त्रीं कथाओंका आधार, स्वयं कर्ताके कथनानुसार, रोहिणीचरित्र है। इस नामकी संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश में अनेक रचनाएँ हैं ( देखिए जिनरत्नकोश ) । यह कथा खूब लोक - प्रचलित भी है, क्योंकि उसमें धार्मिक विधि विधान सम्बन्धी रोहिणी व्रतका माहात्म्य बतलाया गया है। इसका एक संस्करण अँगरेजीमें भी अनुवादित हो चुका है ( देखिए एच० जान्सनका लेख : स्टडीज इन आनर ऑफ़ ए० ब्लूम्फील्ड, न्यू हेवेन, १९३० ) । यह कथा बृहत्कथाकोश (५७) में भी है । किन्तु प्रस्तुत ग्रन्थ की कथा में उसका कुछ अधिक विस्तार पाया जाता है । इस कथामें जो शकुन शास्त्रका उद्धरण आया है वह बृहत्कथाकोश में भी है । ३८वीं कथा, ग्रन्थकारके मतानुसार, भद्रबाहुचरित्र में थी । भद्रबाहुका जीवन-चरित्र अनेक कथाकोशों में पाया जाता है और रत्नन्दिकृत ( संवत् १५२७ के पश्चात् ) एक स्वतन्त्र ग्रन्थ में भी । इसी कथा में उससे कुछ भिन्न चाणक्य भट्टारककी कथाके सम्बन्धमें कहा गया है कि वह " आराधना" से ली गयी है । इस प्रसंग में यह बात ध्यान देने योग्य है कि भद्रबाहुभट्टार (६) और चाणक्य (१८) की कथाएं कन्नड़ वडाराधनेमें भी हैं और ऊपर कहे अनुसार, इस ग्रन्थ से प्रस्तुत ग्रन्थकार सम्भवतः परिचित थे । ये दोनों कथाएँ बृहत्कथाकोश ( १३१ और १४३ ) में भी हैं । ४२वीं कथा श्रीषेणकी है जिसके अन्त में ग्रन्थकारने कहा है कि वे उसका विशेष विवरण यहीं नहीं देना चाहते, क्योंकि वह उन्हीं द्वारा विरचित शान्तिचरितमें दिया जा चुका है। इस नामके यद्यपि अनेक ग्रन्थ ज्ञात हैं ( देखिए जिनरत्नकोश ), तथापि रामचन्द्र मुमुक्षुकी यह रचना अभीतक प्रकाशमें नहीं आयी । इस कथानकके लिए महापुराण ६२-३४० आदि भी देखने योग्य है । ४३वीं कथामें उसके कुछ विवरणका आधार समवसरण ग्रन्थ कहा गया है । ( पृ० २७२ ) ' ४४-४५वीं कथाओंके सम्बन्ध में कर्ताने कहा है कि वे संक्षेप में कही जा रही हैं, क्योंकि वे "सुलोचनाचरित" में आ चुकी हैं । इस नामकी कुछ रचनाएँ ज्ञात हैं ( देखिए जिनरत्नकोश ) । यह कथा महापुराण, पर्व ४६ में भी आयी है । ऊपर बतलाया जा चुका है कि ग्रन्थकार सुग्रीव, बालि प्रभाण्डल आदिकी कथाएँ रामकथा से ग्रन्थ से मेल खाते हैं जो इस प्रकार हैं : पुण्य० कथा २९ ३१ वज्रकर्ण ४७ ४८-४९ ५० Jain Education International रामचन्द्र मुमुक्षु रविषेण कृत पद्मचरितसे सुपरिचित हैं; सम्बन्धित हैं । और प्रस्तुत कथाओंके अनेक प्रसंग उस १० ३९ ५२-५५ पर्व ९५ पद्मचरित 31 ३३- १३० आदि ५- १३५ आदि 31 ,,, ५-५८ व १०४ ३१-४ आदि "1 ऊपर कहा जा चुका है कि पुण्यास्रव में एक श्लोक जिनसेन कृत हरिवंशपुराणसे उद्धृत किया गया है। इस ग्रन्थसे भी कुछ कथाओंका मेल बैठता है । जैसे पुण्य० कथा हरिवंश प० १८-१९ आदि ६०-४२ आदि ६०-५६, ८७, ९७, १०५ आदि For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016057
Book TitlePunyasrav Kathakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Mumukshu, A N Upadhye, Hiralal Jain, Balchandra Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size10 MB
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