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________________ अवैज्ञानिक है। इन तीनों शब्दकोशों की अनुपयोगिता बतलाना हमारा उद्देश्य नहीं है। किन्तु इन तीनों के होने पर भी आज के अनुसंधानकर्ता की अनुसंधान-बुद्धि को सहयोग दे सके, वैसे आगम शब्दकोश की अपेक्षा का अनुभव करना हमें इष्ट है । उस इष्ट की पूर्ति के लिए हमने एक विनम्र प्रयत्न किया है। इस कोश का नाम है आगम शब्दकोश । मैं स्पष्ट करना चाहता हूं कि यह प्राकृत शब्दकोश नहीं है। इसकी सीमा में आगम और उसका व्याख्या साहित्य ही सम्मिलित होता है। आगम अंग और अंग-बाह्य इन दो भागों में विभक्त होते हैं अंग-आचार, सूत्रकृत्, स्थान, समवाय, भगवती, ज्ञाताधर्मकथा, उपासकदशा, अन्तकृतदशा, अनुत्तरोपपातिकदशा, प्रश्नव्याकरण, विपाक। अंगबाह्य-औपपातिक, राजप्रश्नीय, जीवाभिगम, प्रज्ञापना, सूर्यप्रज्ञप्ति, जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति, चन्द्रप्रज्ञप्ति, निरयावलिका, कल्पावतंसिका, पुष्पिका, पुष्पचूलिका, नन्दी, अनुयोगद्वार, निशीथ, व्यवहार, बृहत्कल्प, दशाश्रुतस्कन्ध, आवश्यक, चतुःशरण, चन्द्रवेध्यक, आतुरप्रत्याख्यान, महाप्रत्याख्यान, भक्तप्रत्याख्यान तंदुलवैकालिक (वैचारिक), गणिविद्या, मरणसमाधि, देवेन्द्रस्तव, संस्तारक, महानिशीथ । आगम-व्याख्या साहित्य नियुक्ति-आवश्यक नियुक्ति, दशवकालिक नियुक्ति, उत्तराध्ययन नियुक्ति, आचारांग नियुक्ति, सूत्रकृतांग नियुक्ति, दशाश्रुतस्कन्ध नियुक्ति, बृहत्कल्पनियुक्ति, व्यवहार नियुक्ति, पिण्डनियुक्ति, ओघनियुक्ति, पंचकल्पनियुक्ति, निशीथनियुक्ति। भाष्य-विशेषावश्यकभाष्य, जीतकल्पभाष्य, बृहत्कल्पभाष्य, व्यवहारभाष्य, ओघनियुक्ति लघुभाष्य, ओघहद् भाष्य, पिण्डनियुक्ति भाष्य, पंचकल्पमहाभाष्य । चूणि-नंदि चूणि, अनुयोगद्वार चूणि, ओघनियुक्ति चूणि, आवश्यक चूणि, दशवैकालिक चूणि (अगस्त्यसिंह चूणि और जिनदासचूणि), उत्तराध्ययन चूर्णि, आचारांग चूणि, सूत्रकृतांग चूणि, व्याख्याप्रज्ञप्ति चूर्णि, जीवाभिगम चूणि, निशीथ चूर्णि, महानिशीथ चूणि, व्यवहार चूर्णि, जीतकल्प चूणि, जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति चूणि । प्रकीर्ण ग्रन्थ-प्रवचन सारोद्धार, आगम की टीकाओं में उद्धृत प्राकृत की कथाएं, बृहत्संग्रहणी, कर्मग्रन्थ, अंगविज्जा, ज्योतिषकरण्डक, पंचसंग्रह। ___ आगम शब्दकोश के दो खण्ड होंगे। पहले खण्ड में केवल अंग और अंग-बाह्य आगमों तथा दस प्रकीर्णकों के शब्द तथा उनके सभी प्रमाण-स्थलों का निर्देश रहेगा। दूसरे खण्ड में आगम तथा उनके व्याख्या साहित्य के पारिभाषिक एवं विशिष्ट अर्थ वाले शब्द, उनके उपलब्ध निरुक्त, संदर्भ पाठ, अर्थ आदि रहेंगे। आगमकोश के परिशिष्ट भाग में आगम तथा उसके व्याख्या साहित्य में उपलब्ध विषयों का वर्गीकरण रहेगा। प्रस्तुत ग्रन्थ आगमकोश के प्रथम खण्ड का प्रथम भाग है। इसमें अंगसूत्रों के शब्द और उनके प्रमाण-स्थल संगृहीत हैं । सन् १९७४ में जैन विश्व भारती द्वारा 'अंगसुत्ताणि' के तीन भाग प्रकाशित हुए थे। उनमें अंगों का संशोधित पाठ है। उसी को आधार मानकर यह शब्दकोश तैयार किया गया है । जयाचार्य की निर्वाण शताब्दी के अवसर पर आगमअध्येताओं के हाथों में इसे प्रस्तुत करते हुए मुझे परम आह्लाद का अनुभव हो रहा है। मुझे विश्वास है कि इस प्रयत्न से आगम-अनुसंधान-कार्य को प्रोत्साहन मिलेगा, गति मिलेगी और बल मिलेगा। ४ आचार्य तुलसी लाडनूं १६ मई, १९८० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016053
Book TitleAgam Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1980
Total Pages840
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size17 MB
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