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________________ सुणिरूवित सुचिभूय अंगसुत्ताणि शब्दसूची ६।३।१ २०१३ सुचिभूय [शुचिभूत] आ० चू०१।१३ सुठुत्तरमायामा [सुष्ठूत्तरायामा] ठा० ७।४७।२ सुचिर [सुचिर नाया०१।८।५८; १।१८।५० सुण [श्रु] -सावेंति, सू० २।७।१३. –सुणंति, पहा० सुचिरं [सुचिरम् ] अंत० ३।४२ ५।१०।२. -सुणंतु, नाया० ११११७. -सुणामि, सुच्चा [श्रु] -सुच्चए, पण्हा० ११२७ ठा०३।२८६. --~-सुणिसु ,ठा० १०॥३.-सुणिस्संति, सुजंपिय [सुजल्पित] भ० ११।१५८. नाया० १।१६० ठा०१०१५. --सुणिस्सामि, ठा० ३।२८७. -सुणेइ, सुजणकुलकन्नगा [सुजनकुलकन्यका] नाया० आ० चु० ११११.भ०५।६४.नाया०१।१६।२७०.विवा० . १९१० १।२।१४. –सुर्णेति, ठा०१०१४. नाया० १८।२२६ सुजसा [सुयशस्] सम० प्र०२२१।२ पण्हा० ५।१०।३. विवा० १।२।५२. – सुणेज्जा, आ० सुजात [सुजात] सम०प्र०२४१. उवा०२।२८पण्हा०४।८ चू०४।३५. --सुणेति, आ० ११९४. ठा० २।२०१. सुजाता [सुजाता] ठा० ४।१५५ -सुणेमि, विवा० ११११५०. –सुणेह,आ० ६।८. सू० 1 ठा० ४।२४०११; ६।३६।१, ६२. भ. शाह–सणेहा,सू०२।४।३२.-सुबई,सू० १।५।१८ ६।१४१; ११।१३३, १३४, १४६; १३।१०२, १६४. सुणई [शुनकी] विवा० १।१।३६ नाया० १।१।१६, १७; १।२।८; १।४।३; ११५८; सुणंद [सुनन्द] सम० १५॥१३; प्र० २२६।२. भ०१५।३८ १।१३।१७. उवा० १११४, ४७, ७।३३. पण्हा० से४२ ४१४, ५, ७,८; ७।१; १०१२. विवा० १२२७, १० सुणंदा [सुनन्दा] ठा० ४११५५ ४११५५. सम०प्र० २३७।१.भ० २।१।२; २श्रु० ३१०; २।३।१ १०८१ सुजाया [सुजाता] भ० १०।८१. अंत०७।२ सुणक्खत्त [सुनक्षत्र] ठा० १०।११४।१. भ०१५।१०७से सुज्ज [सूर्य ] सम० ६।१७ ११०, १६५, १८२. अणु० ३०० २२०; ३३६७से ६६, सुज्जकंत [सूर्यकान्त] सम० ६।१७ ७१, ७३, ७४ सुज्जकड | सूर्यकट] सम०६।१७ सुणग [शुनक] सू० २।२।१६. नाया० १।१।१७८; सुज्जज्झय सूर्यध्वज ] सम० १७ १।२।४०. पण्हा० १।२६ ; ३।१८; १०१६ सुज्जपभ [सूर्यप्रभ] सम० ६।१७ सुणणता [श्रवण] ठा० ८।१११ सुज्जलेस [सूर्यलेश्य ] सम० ६।१७ सुणमाण [शृण्वत् ] आ० ११६४.भ०६।१५८; ११।१६४. सुज्जवण्ण [सूर्यवर्ण ] सम० ६।१७ अणु० ३।११. विवा० ११११५०; २।१।३३ सुज्जावत्त [ सूर्यावर्त ] सम० ६।१७ ६।३।४, ६.आ० चू०११५२, ३।५६. सुज्जत्तरवडेंसग सर्योत्तरावतंसक ] सम०६।१७ भ०३।१०२ सुजसिंग [सूर्यशृङ्ग] सम० ६.१७ सुणह [शुनक ] नाया० ११८६४२ सुज्जसि? [सूर्यसृष्ट] सम०६।१७ सुणिउण [सुनिपुण] नाया०१।१६।२४७ सुज्झाइत [सुध्यात] ठा० ३३५०७ सुणित्ता [श्रुत्वा] भ०७।२०६ सुझोसिय [सुजुष्ट] सू० १।२।५१ सुणिद्ध [सुस्निग्ध] पण्हा० ४।७ सुठिच्चा [सुस्थाय] सू० १।१४।१६ सुणिम्मित [सुनिमित] पण्हा० ४।८ सुट्ठिय [सुस्थित ] नाया० १६१६ से २१, २४; सुणिम्मिय [सुनिमित] नाया० १।१।१८ १।१६।२३७ से २४२, २८१, २८३, २६४, २६५ सुणिया [श्रुत्वा] आ० ५।४४ सु? [सुष्ठ] आ० चू० ४।२१, २२; ६।२६. सम०प्र० सुणिरुद्ध [सुनिरुद्ध] सू० १।२।६५ ___ १६०. भ० ११।१७०. नाया० १॥३॥३५॥४. पण्हा० सुणिरूवित [सुनिरूपित ] आ० चू० १५॥२८ ७६५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016053
Book TitleAgam Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1980
Total Pages840
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size17 MB
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