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________________ विसेसाहिय - आगम शब्दकोश विहर १७.११,१३, ३७१।८।८, २६; १।६।५८; १।१०।१८ विस्स [विश्व] ठा० २।३२४ विसेसाहिय [विशेषाधिक ] ठा० ११२४८. सम० २४।२. विस्स [विस्र] पण्हा० १।२३ भ० १।१०८, १११, ११६; २।४७, ११८; ३।१२० से विस्संद [वि--स्यन्द् ] –विस्संदति, ठा० ४।५६४ १२३,१२५, १२६, २५०; ५१८१, २०६।६।५२,७५, विस्संभघाइ [विश्रम्भघातिन् ] नाया० १।२।११ १७३, ७।४०, ४६, ५७, १४५; ८1८४, २०५से२०७, विस्संभघायय [विधम्भघातक] विवा० ११६।२३ २१२ से २१४, २२८, ३८५, ४०४, ४११, ४१८, विस्संभर [विश्वम्भर] सू०२।३।८० ४३७, ४४७; १०१, १०६, ११३, ११८; विस्सभइ | विश्वभूति | मम०प्र० २४२।१ ११।१०६, ११०, ११३; १२।६६, १००, १९७, १६८, विस्सम्भ[विश्रम्भ ] विवा० १।३।५० २०५; १३।६१,६६; १४१७४; १६३१२७; १७१८४; विस्सर [विस्वर] ठा०७।४।११,१२. सम०३०१।१३. १६।२४; २०१८, ८१, ८५, १०३, १०४, १०६ से नाया० १।६।२५. पण्हा० ११२७. विवा० १।२।३२,३४ १११; २५॥३; ७, ३६, ६८से १०१, १५८,१५६,१६२, विस्सवाइयगण [विस्सवाइयगण] ठा० ६।२६ १६४,१६६, १६७, २१०, २११, २३६ से २३६,३४८, विस्ससेण [विश्वसेन] सम० २२०।२, २३४।१ ३६२, ४५१, ४८६,४६६,५५० ; ३४।३६,४०,४७,४८ विस्साएमाण [विस्वादयत् ] भ०१२।४,६,१२से १४,१८ विसेसूण [विशेषोन] सम०३११५; ३३।४;३७।२;३८।२ विस्साण [वि+श्रण ] --विस्साणेति, आ०चू०१५॥१३ विसोग [विशोक] आ०९।१।१० विस्साणित्ता [विश्राण्य] आ० चू० १५।१३, २६ विसोतिया[विस्रोतसिका] आ० १।३६; ६।४६ विस्सुय [विश्रुत ] नाया० १।१६।१८५.पण्हा० ४।४ विसोधेमाण [विशोधयत् ठा० ५।१६६; ७८१ विस्सेणि [विश्रेणि] आ० ६६८ विसोह [वि+ शोधय ] -विसोहिज्जइ, उवा० ११७८. विह [विह] आ० ८।५८,६।४।११. आ० चू० ३।१२,६०; -विसोहिस्सामि,भ०१०।२०.–विसोहेइ,सू०२।२।१३. ५१४६; ६६५७; १२।१ उवा०११८२.--विसोहज्ज,आ०३।२६.–विसोहज्जा, विह विध] भ०२०११६. पण्हा०२।८ ठा०३।३३८. –विसोहेमि, भ०८।२५१. –विसोहेह, विहंग [विभङ्ग] पण्हा० ३.१८ उवा० ११७८. -- विसोहेहि, आ० चू० ५।२५. नाया० विहंग [विहङ्ग] पण्हा० १६ १।१६।१५५. उवा० १७७ विहंगम [विहङ्गम] सू० ११३१७२ विसोहइत्ता[विशोध्य ] सू० १।६।१७ विहग[विहग] आ० चू०१५।२८.सू०२।२।६४.भ०८।१०३; विसोहण[विशोधन] सम० प्र०६० ११।१३८. नाया० १।१।२५, ८६, १२६; ११५॥३५; विसोहणता [विशोधनता] ठा० ८।१११ ११८।४६. पण्हा०४७; १०१११ विसोहणी [विशोधिनी] ठा० ६।४६।१ विहगगइनाम [विहगगतिनामन्] सम० ४२।६ विसोहि [विशोधि] सू०१३११५४.ठा०३।४३३,५॥१३२; विहगगइपव्वज्जा [विहगगतिप्रव्रज्या] ठा० ४।५७३ १०।८५. सम० १४१५;प्र० ८६. भ० ६।१२८ विहण [वि+हन्[-विघायए, आ० ३।५३.-विहण, ० २।१६८. विवा० पण्हा० ११२७ शमा२३ विहष्णु [विधज्ञ] विवा० १।४।६; १।६।३ विसोहित्ता [विशोध्य] आ० चू० ५।२५ विहत्तु [विहत्य] सू० १।५।२१ विसोहिय [विशोध्य] आ० चू० १।२ विहत्थि[विहस्ति] सू० १।५।२२. भ० ६।१३४ विसोहिया[विशोधिका] सू० १।३।५५; १।१३।३।। विहम्मणा [विधर्मना] पण्हा०३।१२ विसोहेयव्व [विशोधितव्य ] उवा०११८० विहम्मेमाण[विघ्नत् ] विवा० १४१४४६, १३६ विस्स [विश्वक्] आ०८।१०७,१२७ विहर [वि। ह]-विहरइ,आ० चू०१५।१५.सू०२।७।४. ६७६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016053
Book TitleAgam Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1980
Total Pages840
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size17 MB
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