SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 69
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन आगम प्राणी कोश .55 तोट्ठा [तोट्टा] प्रज्ञा. 1/515 लक्षण-शरीर के आगे का भाग दैत्य के समान, और Silk-worm, Silk-Cocoon-कृमिकोश, रेशम का पीछे का भाग मछली के तुल्य होता है। सिर पर दो कीट। देखें-कोसिकारकीड लम्बे सींग तथा हाथ बड़े-बड़े। चमकता हुआ [विशेष विवरण के लिए द्रष्टव्य-फसल पीड़क कीट, लाल-काले रंग का शरीर। Incyclopedia in colour] विवरण-15वीं शताब्दी में इसे Adriatic Sea में सर्वप्रथम देखा गया। वैज्ञानिकों के मतानुसार वर्तमान दंस [दंश] आ. चू. 6/61 सू. 1/3/12 ज्ञाता. में यह विलुप्तप्राणी है। 1/1/17 [विशेष विवरण के लिए द्रष्टव्य-Manand animals, A kind of Large Sized Mosaquito-TH सूत्र. चूर्णि पृ. 158] देखें-डंस दहुर [दर्दुर] औ. 51 जीवा. 3/10 सूर्य. 20/2 दगतुंड [दगतुंड] प्रश्नव्या. 1/9 प्रज्ञा. 2/49 तक Laggar-falcon-लग्गर, रघट खगान्तक, दगतुंड। FROG-मेंढक आकार-जंगली कौवें से कुछ बड़ा। देखें-मंडुक्क दद्दुर दर्दुर] औप. 57 जीवा. 3/10 प्रज्ञा. 2/49 Frog-Bird, Night-Jar-छिपक, दाब-चिरी, चपक, नाइटजार। लक्षण-राख जैसा भूरा बाज (श्येन) जिसके निचले भाग में भूरी धारियां होती हैं। आंखों के आगे-पीछे से पतली भूरी मूंछ जैसी धारियां नीचे की ओर जाती हैं। विवरण-केवल भारत में पाए जाने वाला यह पक्षी शिकार करने में दक्ष होता है। उड़ते हुए शिकार पर झपट्टा मारने तथा उनका पीछा करने में इनके जोड़े मिल आकार-मैना से कुछ छोटा। कर काम करते हैं। कबूतरों के लिए यह यमराज के लक्षण-शरीर का रंग धूमिल पीला तथा गेहुंआ। जिस तुल्य होता है। पर धूसर बिन्दियां होती हैं। [विशेष विवरण के लिए द्रष्टव्य-K.N. Dave पृ. 221] विवरण-मुलायम पंखों वाला यह पक्षी रात्रि में ही शिकार करता है। झाड़-झंखाड़ वाले क्षेत्रों में अकेला दगरक्ख स [जलराक्षस] सू. 1/7/15 रहना पसंद करता है। बिना पंख फड़फड़ाए यह काफी Seadevil-जलराक्षस (मनुष्य की आकृति वाला दूर तक उड़ सकता है। इसकी बोली चुक-चुक-चुक-र-र-री जलचर प्राणी जो समुद्रों में रहता है।) की होती है। आकार-मनुष्य की आकृति से मिलता-जुलता [विशेष विवरण के लिए द्रष्टव्य-K.N. Dave पृ. 171, जलचर प्राणी। चरक 1/27] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016052
Book TitleJain Agam Prani kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVirendramuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages136
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy