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________________ जैन आगम प्राणी कोश अब अंधे-व्यक्तियों को चलने में मदद करने वाले यंत्रों के रूप में किया जा रहा है। विशेष-विवरण के लिए द्रष्टव्य-K.N.Dave पृ.-166 एवं सचित्र विश्व-कोश] अणुल्लक [अणुल्लक] उत्त. 36/129 A Small Wood-Worm-अणुल्लक, छोटा काष्ठ-कीट। देखें-काष्ठाहार अंधकारमय स्थान आदि में उल्टा लटका रहता है। विवरण-विश्व-भर में इनकी 950 प्रजातियां पाई जाती हैं। इनमें अधिकांश मांसाहारी, कुछ शाकाहारी एवं तीन प्रजातियां खून पीने वाली होती हैं। इटली के जीव वैज्ञानिक लैजारो स्पैलेजानी के अनुसार शिकार पकड़ने या अवरोधों से बचने के लिए चमगादड़ आंखों की जगह कानों का इस्तेमाल करता है। उसके गले से एक विशेष प्रकार की ध्वनि निकलती है जो सामने वाली वस्तु से टकराकर उसके गुण धर्म आदि की सारी सूचनाएं ले आती है। 1938 में वैज्ञानिकों ने पहली बार जाना कि चमगादड़ जो ध्वनि निकालता है उन ध्वनि तरंगों की आवृत्ति 50.00 हर्टस से लेकर 1,50,000 हर्टस के बीच होती है। जबकि मनुष्यों के कानों को सुनाई देने की क्षमता मात्र 20 हर्टस से लेकर 20 हजार हर्टस तक ही होती अत्थभिल्ल [अत्थभिल्ल] नि.चू. 2 पृ. 93 Bear-भालू खुद के द्वारा निकाली गई आवाज की प्रतिध्वनि की सूक्ष्म बारीकियों को सुनने के लिए चमगादड़ का कान प्राणी-विशेषज्ञों के लिए आश्चर्य का विषय है। चमगादड़ों की श्रवण शक्ति की बारीकियों का उपयोग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016052
Book TitleJain Agam Prani kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVirendramuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages136
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size17 MB
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