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________________ परिशिष्ट १ अवशिष्ट देशी शब्द प्रस्तुत ग्रन्थ 'देशी शब्दकोश' के मूलभाग में हमने जैन आगमों, उनके विभिन्न व्याख्या-ग्रन्थों तथा आचार्य हेमचन्द्रकृत 'देशी नाममाला' के शब्दों का सप्रमाण और ससन्दर्भ संग्रहण किया है। लेकिन इनके अतिरिक्त उत्तरकालीन प्राकृत ग्रन्थों में प्रयुक्त देशी शब्द अवशिष्ट रह जाते हैं। उन अनेक ग्रन्थों के विद्वान् संपादकों ने अपने-अपने संपादित उन प्राकृत ग्रन्थों में देशी शब्दों का अलग से परिशिष्ट भी दिया है। उन शब्दों का हमने ज्यों का त्यों इस परिशिष्ट में संग्रहण किया है। हमने मूल देशी शब्द तथा उसके अर्थ अर्थों का निर्देश मात्र किया है। पाइअसहमहण्णवो' में संग्रहीत उत्तरवर्ती प्राकृत ग्रन्थों के देशी शब्दों का भी इसमें संग्रहण किया है। यह परिशिष्ट शोधकर्ताओं के लिए उपयोगी सिद्ध होगा।] अंगुलिय-ईख का टुकड़ा अंघो-भयसूचक अव्यय अ--१ उपमा। २ सादृश्य । अंछविअंछी-आकर्षण-विकर्षण ३ उत्प्रेक्षा---इन अर्थों का सूचक | अंतल्ली -१ पेट । २ लहर का मध्य अव्यय अंदुया-शृखला अइअड्ड-अतिविकट-अड्ड विकटार्थे | अंबभित्त-आम का टुकड़ा देशी अंबपिसाय-राहु अइणिरत्त-अति निश्चित अंभु-पत्थर अइणीय-आनीत, लाया हुआ अकासिअ-पर्याप्त अइन्नदुवार—बिना दरवाजा बंद | अकोप्प-अपराध ___ किए अक्कसाल-बलात्कार अइभल्ल-अतिभद्र अक्का-माता अइरवण्ण-अतिरम्य अक्खण-आसक्ति अइरिप्प-कथाबंध अक्खणिय-व्याकुल भइरुंद-विपुल अखंपण-स्वच्छ, निर्मल अउस-उपासक, पुजारी अखुट्ट-अखूट अं-स्मरणद्योतक अव्यय अखुट्टिअ-अखूट, परिपूर्ण अंकिइल्ल-नट, नर्तक अगंडिगोह-यौवन का उभार अंगुमिय–पूरित | अगिल-अविच्छिन्न स्वर से रुदन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016051
Book TitleDeshi Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1988
Total Pages640
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size19 MB
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