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________________ ५० भावना से सहयोग किया। मुमुक्षु बहिन निरंजना, इदु, अमिता, मधु, आशा, जतन, गुलाब आदिआदि ने देशीकोश के कार्यों की प्रतिलिपि करने तथा अन्यान्य कार्यों में पूर्ण सहयोग दिया। यह सारा कोश कार्य के सहभागियों का स्मरणमात्र है। इन सबके सहयोग का स्मरण आत्मतोष की अनुभूति कराता है। मैं श्रुत-परम्परा के संवाहक और संवर्धक प्राचीन आचार्यों तथा मुनिजनों के प्रति प्रणत हूं, जिन्होंने श्रुतपरम्परा को अविच्छिन्न रखने का सतत प्रयास किया है और उसे अपने ज्ञानकणों से सींचा है, विकसित किया है। उन सबकी श्रुतोपासना की ही यह फलश्रुति है कि जैन साहित्य भंडार उनके सारस्वत अवदान से भरा रहा है । उन्होंने श्रुतसागर का जो मंथन किया, वह अपूर्व है । उनकी ग्रन्थराशि से कुछेक ग्रन्थों का अवलोकन कर हमने इस कोश ग्रन्थ का निर्माण किया है । मैं सभी श्रुतसमृद्ध आचार्यों को श्रद्धासिक्त भाव से नमन करता हूं। इसी श्रुतपरम्परा के वर्तमान संवाहक तथा त्रिविध स्थविर भूमिकाओं के धनी अक्षर पुरुष हैं----आचार्य तुलसी और युवाचार्य महाप्रज्ञ । तेरापंथ धर्मसंघ को इनका सारस्वत अवदान अपूर्व है। आगम-सम्पादन इनका शलाका-कार्य है और है साहित्यिक प्रसाद जो तन-मन का कायाकल्प करने में समर्थ है। उसी आगम-सम्पादन महाकार्य का यह कोशकार्य एक स्फूलिंग है। ऐसे स्फुलिंग अनेक हैं । आचार्य श्री ने उन स्फुलिंगों के संवाहक अनेक गुनियों, साध्वियों और समणियों को तैयार किया है और अपने इन सहस्रकरों से कार्य करवा रहे हैं। नए-नए आयामों का सर्जन, पोषण और संरक्षण इन्हीं घटकों पर आधृत है। दोनों युगपुरुषों के मार्गदर्शन ने इस बहु आयामी आगम कार्य को सुगम बनाया है और कार्य की मंथरता में भी नई निष्पत्तियों की सर्जना की है। मैं उनके इस शाश्वतिक अवदान को सहस्रशः नमन करता हूं। तीन साध्वियों को इस कोश-कार्य में नियोजित करने और उन्हें निरंतर प्रोत्साहित करने में साध्वी प्रमुखा श्री कनकप्रभाजी का महान् योग रहा है। कोश के यात्रापथ की निविघ्न संपूर्ति में उनकी मंगलभावना बहुत ही कार्यकर रही है । मैं उनके इस भावना-योग के प्रति प्रणत हूं। __मैं उन सभी ग्रन्थकर्ताओं, व्याख्याकारों तथा कोशकारों के प्रति अपना आभार व्यक्त करता हूं, जिनके ग्रन्थों के अवलोकन से हमारा दुरुह कार्य सुगम बना, दृष्टि परिमार्जित हुई और नए-नए उन्मेष आते रहे । अनेकांत शोधपीठ के डाइरेक्टर डॉ० नथमल टाटिया ने इस ग्रन्थ की भूमिका लिखकर हमें उत्साहित किया है। अभी-अभी एक मेजर आपरेशन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016051
Book TitleDeshi Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1988
Total Pages640
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size19 MB
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