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________________ देशी शब्दकोश हत्यिहरिल्ल–वेष, पोशाक (दे ८।६४) । हत्थेव्वग-हाथ में पहनने योग्य-'हत्थेव्वगा आभरणगा कडगादी पादे करेति' (निचू ३ पृ ४०७) । हत्थोडी-१ हाथ का आभूषण । २ हाथ से दिया जाता उपहार (दे ८७३)। हत्थोपक-हाथ का आभूषण (अंवि पृ १६२) । हद-बालक का मलमूत्र (पिटी प ८६) । हहन्नय-बालक का मल-मूत्र साफ करने वाला (पिनि ४७१) । हद्धअ-हास, हंसो (दे ८।६२)। हप्पिच्छ-अश्व का प्रिय खाद्य-धान्य-विशेष-'आसो हपिच्छं (हरिमत्थं) मुग्गमादि मधुरं' (निचू २ पृ २४७) । हम्मिअ-गृह, घर (आचूला २।१८; दे ८।६२) । हयमार-कणेर का गाछ (पा ३७४) । हरतणु-भूमि को भेदकर निकलने वाले जलबिंदु-'हरतणू महिया हिमे' (उ ३६।८५)। हरतणुग-भूमि को भेदकर निकले हुए जल-बिंदु-'किंचि सणिद्ध भूमि भत्तूण कहिंचि समस्सयति सफुसितो सिणेहविसेसो हरतणुतो' (दअचू पृ ८८)। हरतणय-भूमि को भेदकर निकले हुए जलबिंदु-'हरतणुओ भूमि भेत्तूण उठेइ, सो य उबुगाइसु तिताए भूमीए ठविएसु हेट्ठा दीसति' (दजिचू पृ १५५)। हरपच्चुअ-१ स्मृत, याद किया हुआ । २ नामोल्लेखपूर्वक दिया हुआ (दे ८७४)। हरहरा-उचित अवसर, युक्त प्रसंग-निद्भूमगं च गाम महिलाथूभं च सुन्नयं दर्छ । नीच कागा ओलिंति जाया भिक्खस्स हरहरा ॥' (विभा २०६४) । हरि-शुक, तोता (दे ८।५६) । हरिआली-दूर्वा (दे ८।६४) । हरिचंदण-कुंकुम (दे ८६५) । हरिडय-कोंकण देश में प्रसिद्ध वृक्ष-विशेष (प्रज्ञाटी ३१) । हरितग-कोंकण देश में प्रसिद्ध वृक्ष-विशेष (प्रज्ञा ११४४)। हरिमंथ-चना (उसुटो प ५६) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016051
Book TitleDeshi Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1988
Total Pages640
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size19 MB
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