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________________ ક शब्दानुशासन के अन्त में १६०० देशी शब्दों की सूची है । उनमें से कुछ शब्द हेमचन्द्र के देशी संग्रह में आ चुके हैं । शेष सभी शब्द इस परिशिष्ट में समाविष्ट हैं । यह ग्रंथ हमें बहुत बाद में प्राप्त हुआ अतः हम इसके शब्दों को ग्रन्थ के मूल भाग में समाविष्ट नहीं कर सके । समीक्षात्मक एवं आलोचनात्मक ग्रन्थों में भी यदि कहीं देशी शब्दों की सूची मिली है, उन शब्दों को भी हमने इस परिशिष्ट में सम्मिलित किया है । जैसे --- 'हरिभद्र के प्राकृत कथा साहित्य का आलोचनात्मक परिशीलन" में लेखक 'भाषा शैली और उद्देश्य ' - - अध्याय के अन्तर्गत कुछ देशी शब्दों का संकेत करते हैं । वे कहते हैं - 'यहां कुछ देशी शब्दों की तालिका दी जाती है । यद्यपि इन शब्दों में कुछ शब्दों को संस्कृत से व्युत्पन्न किया जा सकता है पर मूलतः इन शब्दों को देशी कहा गया है ।' ऐसा कह कर लेखक ने लगभग १९३ शब्दों का अर्थ सहित उल्लेख किया है, जिनमें कुछ शब्द देशीनाममाला के भी हैं । इस प्रकार जहां भी हमें देशी शब्द मिले, उनका बिना संदर्भ एवं प्रमाण के अर्थ सहित संकलन कर दिया है । इस परिशिष्ट में प्रयुक्त ग्रन्थों के नाम इस प्रकार हैं १. मुणिचन्द कहाणयं, २. कंसवहो, ३. वज्जालम्गं, ४. हरिभद्र के प्राकृत कथा साहित्य का आलोचनात्मक परिशीलन, ५. जंबूसामिचरिउ, ६. पउमचरियं ७, आख्यानकमणिकोश, ८. अपभ्रंश काव्यधारा, ६. चउप्पन्नमहापुरिसचरियं, १०. गउडवहो, ११. वड्ढमाणचरिउं, १२. सुदंसणचरिउ, १३. रावणवह महाकाव्यम्, १४. महापुराणम्, १५. णायकुमारचरिउ, १६. पउमचरिउ - भाग १ से ३, १७. पुहविचंदचरियं १८. करकंडुचरिउ, १६. मयणपराजयचरिउ, २०. जसहरचरिउ, २१. सिरिवालचरिउ, २२. प्राकृतशब्दानुशासन । इस परिशिष्ट में एकत्रित कुछेक देशीशब्द विमर्शणीय हैं । किन्तु हमने तत् तत् ग्रन्थ के विद्वान् संपादकों के चिन्तन को मान्य कर उन शब्दों का यहां अविकल संकलन कर दिया है। अधिक से अधिक देशी शब्द एक ही ग्रन्थ में प्राप्त हों, यह इस संकलन का उद्देश्य है । प्रत्येक शब्द की समीक्षा हमें अभिप्रेत नहीं रही । सुधी पाठक इस बात को ध्यान में रखें । दूसरा परिशिष्ट देशी धातुओं से सम्बन्धित है । इसमें १७४५ धातुएं हैं । हमने सन्दर्भ सहित तथा बिना सन्दर्भ वाली - दोनों प्रकार की धातुओं को साथ में ही रखा है । इनमें प्राकृत व्याकरण की सभी आदेशप्राप्त धातुओं का समावेश है तथा आगम तथा आगमेतर साहित्य में अन्य विद्वानों द्वारा मान्य देशी धातुओं का भी संकलन है । जिस संस्कृत धातु को आदेश हुआ है उसे भी कोष्ठक में दिया गया है । यह परिशिष्ट छोटा होते हुए भी व्याकरण एवं धातुज्ञान की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016051
Book TitleDeshi Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1988
Total Pages640
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size19 MB
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