SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 47
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४६ साहित्य एवं कोशों में भी मिलते हैं, किन्तु ये शब्द क्षेत्र - विशेष में प्रचलित भाषाओं के हैं । बाद में इनका संस्कृत साहित्य में प्रयोग होने लगा । इसी प्रकार वारक/वारग शब्द संस्कृत में घड़े के लिए प्रसिद्ध है किन्तु यह शब्द मरुधर देश में मंगलघट के अर्थ में प्रसिद्ध था - 'वारकः मरुदेशप्रसिद्धनाम्ना मांगल्यघटः ।' पणवणा सूत्र में अनेक जीव-जंतुओं एवं हुआ है । उनकी पहचान को कठिन बताते हुए देशतोऽवसेयाः । सम्प्रदायादवसेयः । लोकप्रतीतः । रूढ़िगम्यम् आदि । वनस्पतियों का नामोल्लेख स्वयं टीकाकार कहते हैं- जहां हमें नाम के बारे में निश्चित जानकारी मिली उसका नामोल्लेख किया है | अन्यथा वनस्पति- विशेष, लता - विशेष, पुष्प- विशेष का उल्लेख किया है । इसी प्रकार आभूषणों के बारे में भी आभूषण - विशेष का उल्लेख किया है । इस कोश में ऐसे अनेक देशी शब्द संकलित हैं जो प्राचीन भारत की सभ्यता एवं संस्कृति पर प्रकाश डालते हैं । जैसे आवाह, विवाह, आहेणग, पहेणग, गिरिजन, करडुयभत्त, मडगगिह, एमिणिआ, अण्णाण, आणंदवड, वहूपोत्ति, भोयडा आदि आदि शब्द सामाजिक रीति-रिवाजों एवं परम्पराओं के संवाहक हैं । अधिक्कमणक, अवयार, इंदड्ढलय आदि शब्द उत्सवों तथा अइराणी, इंदियाली, उंत, उयणिसय, कोटल, विंटल आदि शब्द विशेष अनुष्ठानों एवं मंत्रों के वाचक हैं । अप्पसत्थभ, आपुरायण, आमोसल, कंडूसी, ककितजाण, गल्लोल आदि अनेक शब्द विविध गोत्रों के वाचक हैं । इसी प्रकार नानाप्रकार के शिल्पकर्म, पुस्तकें, जातियां, सिक्के, यानवाहन, शस्त्र, रोग, खेल, जाल, वाद्य, वेशभूषा, खानपान, घर के अवयव, घरेलु उपकरण, पारिवारिक सम्बंध आदि के संसूचक सैंकड़ों शब्द इस कोष में संगृहीत हैं । अमोसली, कडजुम्म, उग्गह, अमुदग्ग, किट्टि, णिगोद, फडुग, पउट्टपरिहार आदि पारिभाषिक शब्द भी इसमें संगृहीत हैं । इस कोश में अनेक एकार्थक देशी शब्दों का संकलन है । जैसे—-छोटी तलाई के वाचक तीन शब्द हैं- खल्लर खिल्लूर छिल्लर शब्दा देश्या एकार्थकाः । इसी प्रकार और भी उदाहरण द्रष्टव्य हैं १. विदग्ध --- छलिआ छइल्ल छप्पण्ण । २. मां- अल्ला अव्वा अम्मा । ३. दुष्टघोडा - तंडीति वा गलीति वा मरालीति वा एगट्ठा । ४. पैबंद ---पडियाणिया थिग्गलयं छंदंतो य एगट्ठ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016051
Book TitleDeshi Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1988
Total Pages640
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy