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________________ ३६६ देशी शब्दकोष वडप्प---१ लता-गहन । २ निरंतर-वृष्टि (दे ७।८४)। वडम-वामन, कुब्ज, जिसका पीछे के या आगे के शरीर का भाग उभरा हुमा हो (निचू ३ पृ २७१) । वडय-सूती वस्त्र-'कोसेज्जा वडओ भण्णति । टसर इति भाषायाम्' (निचू २ पृ ६८)। वडह-पक्षि-विशेष (दे ७।३३)। वडा-वृति, परिक्षेप-'एगवडाए इति एकवृतिपरिक्षेपायाम्' (व्यभा ३ टी प ६६) । वडार-विभाग (व्यभा ७ टी प ६३) । वडालि–पंक्ति, श्रेणी (दे ७।३६) । वडिसर-चूल्हे का मूल (दे ७.४८) । वडी-बड़ी, शाक-विशेष (प्रसा ४३४) । वड्ड-१ उदंड (ति ११६३) । २ उच्च, महान्-'वड्डेणं सद्देणं जोक्कारोत्ति भणितं' (आवहाटी १ पृ ४३) । ३ कलह (उशाटी प १७६)। ४ बड़ा (ज्ञा २।१।१८; दे ७।२६) । वड्डवग-बड़े परिवार वाला (निभा ३६२२)। बड्डखेड्ड-जादू का खेल, इन्द्रजाल देखें-'वट्टखिड्ड' (आवटि प ५३) । वडग-१ पात्र (बृभा ४८०६) । २ बड़ा (भ १९७८)। वड्डवास-मेघ (दे ७।४७) । वड्डहल्लि-मालाकार, माली (दे ७१४२) । वड्ढ-१ पौ फटते-फटते, शीघ्र-'ते वड्ढे पभाए उठेत्ता गया' (आवहाटी १ पृ १३७) । २ बड़ा (निचू १ पृ ६)। वडा-वर्धकी, बढई (सम १४१७)। बढइअ-१ चर्मकार, मोची (दे ७।४४) । २ बढई (व)। वड्ढणमिर--पीन, पुष्ट (दे ७.५१) । बड्ढणसाल–पुच्छहीन, जिसकी पूंछ कट गई हो वह (दे ७।४९) । वडर-गृहस्थ के प्रयोजन के लिए जादू-टोना करना (व्यभा ४।३ टी प ४६) । बडढवण-१ वस्त्र का आहरण । २ बधाई, अभ्युदय-निवेदन (दे ७८७) । वड्ढावि-समाप्त किया हुआ (दे ७.४५) । वडिआ-कूपतुला, कूए से पानी ऊपर खींचने का साधन-विशेष (दे ७।३६)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016051
Book TitleDeshi Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1988
Total Pages640
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size19 MB
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