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________________ ३४४ देशी शब्दकोश मोडाउड-अहमहमिका -'जेणुम्मत्तपमत्तउ हिंडइ पुरिपहिहिं । मोडाउडि करंतउ वेढिउ बहुनरहिं । (उसुटी प १३५) । मोढरी-वनस्पति-विशेष (भ २३।६) । मोहालक-वृक्ष-विशेष (जीव ३१५८०)। मोब्भ-घर के ऊपर का तिर्यक् काष्ठ (दे ८।४) । मोभ-घर के ऊपर का तिर्यक् काष्ठ-'धरणयोरुपरिवर्ति तिर्यगायतकाष्ठं ____ 'मोभं' इति यत्प्रसिद्धम्' (भटी पृ ६६१)। मोय-१ मूत्र (स्था २०२४७) । २ बीजकोश, गिरी-'मोयं पुण छल्लिपरिहीणं' (निभा ५४११), 'मोय अब्भंतरो गीरो'. (निचू ४ पृ ६६)। मोयइ-देश-विशेष में प्रसिद्ध एक अस्थिवाला वृक्ष (प्रज्ञा ११३५१) । मोयमेहा-प्रस्रवण-'कोसं च मोयमेहाए' (सू १।४।४३)। मोयारग-मदारी (अनुद्वाहाटी पृ १२)। मोयारय-बंदर पकड़ने वाला-'मोयारएहिं गहिओ' (अनुद्वाहाटी पृ १२)। मोर-श्वपच, कुत्तों को पकाकर खान वाले चांडालों की एक जाति (दे ६।१४०)। मोरउल्ला-मुधा, व्यर्थ (प्रा २।२१४) । मोरंग-कान का आभूषण-विशेष-'घडेहि मे एत्थ मोरंगाई' (निचू ३ पृ २६६)। मोरंड-१ तिल आदि के मोदक बेचने वाला (बृभा ३२८१) । २ तिल आदि के मोदक । ३ खाद्य-विशेष-'मोरंडा नाम रोट्टमया गोलया जारिसया कीरंति इति विशेष चूणौँ' (टी पृ ६१६)। मोरंडक-तिल आदि के मोदक बेचने वाला (बृभा ३२८१)। मोरकूल्ला-अवज्ञा, व्यर्थ-'मोरकुल्ला, मुहा य मुहियत्ति नायव्वा' इति बचनात् अवज्ञयेति भावः । उक्तञ्च मूलटीकायां 'मुधिकया अवज्ञया' (जीवटी प १०६)। मोरग-१ कुण्डल-'लोभेण मोरगाणं, भच्चग ! छेज्जेज्ज माह ते कन्ना' (बृभा ५२२७) । २ तृण-विशेष (आवचू २ पृ १२८) । ३ मयूर की पांख से निष्पन्न (पंक ४८३) । मोरड-क्षाररसवाला एक पौधा (व्यभा २ टी प ४०)। मोरत्तअ-१ श्वपच, श्वपाक (दे ६।१४०)। २ चण्डाल-'मोरत्तो चण्डाल __ इत्यन्ये' (व) । मोरत्तिय-चांडाल-जाति (निचू २ पृ २४३) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016051
Book TitleDeshi Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1988
Total Pages640
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size19 MB
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