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________________ अंक (अङ्क) निकट। अक्खलिय (अस्खलित) आकुल-व्याकुल । अदंसण (अदर्शन) चोर। अमय (अमृत) चांद । इसी आधार पर प्रस्तुत कोश में भी अनेक शब्दों का समावेश किया गया है। जैसे-- अच्चिय (अचित) मूल्यवान् । अवतंस (अवतंस) पुरुषव्याधि नामक रोग । आयंस (आदर्श) घोड़े का आभूषण । तरमल्लिहायण (तरोमल्लिहायन) युवा । पइरिक्क (प्रतिरिक्त) एकांत । देशीनाममाला में इल्ल और इर प्रत्यय वाले कुछ शब्दों का संग्रहण है। जैसे--अंबिर (आम), सच्चिल्लय (सत्य), तत्तिल्ल (तत्पर); लोहिल्ल (लोभी), णच्चिर (रमणशील)। इसी आधार पर दिट्ठिल्लिय, गतिल्लिय आदि शब्दों को हमने भी देशी की कोटि में रखा है। आचार्य मलयगिरि ने पढमेल्लुग शब्द के लिए देशी का निर्देश किया है। इसलिए संभव लगता है कि किसी क्षेत्र-विशेष में इल्लादि-प्रधान शब्दों का व्यवहार अधिक प्रचलित रहा हो, उसी के आधार पर इसे देशी माना हो। 'इर', 'इल्ल' प्रत्यय से सम्बंधित हजारों शब्द आगम एवं व्याख्याग्रंथों में मिलते हैं। किन्तु सबका समावेश इसमें नहीं हो सका है। प्राकृत शैली से जिन शब्दों का रूप परिवर्तित हो गया है, वैसे अनेक शब्द देशीनाममाला में संगृहीत हैं। हमने भी कुछ शब्द इस कोश में सम्मिलित किए हैं, जैसे-आघविय, तिगिछ' आदि । देशीनाममाला में राजा तथा गांव-विशेष के नाम भी देशी रूप में लिए गए हैं। राजा सातवाहन के लिए तीन शब्द आए हैं-कुंतल, चउरचिंध और हाल तथा गुजरात के एक गांव 'मोढेरक' के लिए 'भयवग्गाम' शब्द प्रयुक्त हुआ है। इसी आधार पर हमने भी कुछ व्यक्तियों, देशों तथा नगरों के नामों को देशी के अंतर्गत लिया है। जैसे—गोब्बर, कुडक्क, कोक्कास, तुरक्क आदि । __ आचार्य हेमचंद्र ने संख्यावाची शब्दों को भी देशी के अंतर्गत समाविष्ट १. आवश्यक, मलयगिरि टीका पत्र ११६ : प्रथमा एव प्रथमेल्लुका देशी पदमेतत् । २. आघवियं ति प्राकृतशैल्या छांदसत्वाच्च गुरोः सकाशादागृहीतम् । ३. प्राकृते पुष्परजःशब्दस्य तिगिछ इति निपात: देशीशब्दो वा। . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016051
Book TitleDeshi Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1988
Total Pages640
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size19 MB
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