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________________ ३२६ मकण्णी - कान का आभूषण - विशेष (अंवि पृ ७१ ) । मकरिय-वाद्य विशेष ( नि १७|१३८ ) । मकसक - सूखा क्षेत्र (अंदि पृ १६२ ) । मक्कड - जाल बुनने वाला कीड़ा (दे ६।११६वृ ) । मक्कडबंध -- स्वर्णसूत्र से निर्मित गले का आभरण- विशेष जो जनेऊ की भांति बाएं कंधे के ऊपर तथा दाएं कंधे के नीचे पहना जाता है (दे ६।१२७) । मक्कोड - यंत्र से गुंफित करने के लिए किया जाने वाला ढेर - मक्कोडो यन्त्र गुम्फनाथं राशिश्च' ( दे ६ । १४२ वृ ) । मक्कोडग - चींटा, मकोड़ा ( आचू पृ २६० ) । मक्कोडय --मकोड़ा, चींटा (ओनि ५५८ ) । मक्कोडा - ऊर्णापिपीलिका, मकडी (दे ६ । १४२) । मगइय-- हाथ से फेंका जाने वाला पाश ( विपा ११३ | ४३ ) | देशी शब्दकोश मगदंतिगा - मालती ( दअचू पृ १२८ ) । मगदंतिया - १ मालती (द ५|२| १४) । २ मोगरा । २ मल्लिका (बेला) ( अचू पृ १२८; हाटी प १८५) ४ मेंहदी का गाछ । अगरिग - आभूषण - विशेष ( जीव ३।५१३) । मगसक - चतुरिन्द्रिय जीव - विशेष । (अंवि पृ २३७ ) । मगसिर - चतुरिन्द्रिय जंतु- विशेष (जीवटी प ३२ ) । मगहगधरच्छ- - आभरण - विशेष ( औप ५१ टि) । मगा— पश्चात् (दे १।४ वृ) | अग्ग - पश्चात्, पीछे (आवचू १ पृ ५६ ; दे ६।१११ ) | मग पीछे ( मराठी ) । मग्गय - पश्चात्, पीछे ( पा ε६४) । मेग्गइय- हस्तपाशित, हाथ से फेंका जाने वाला फंदा (विपाटी प ६२ ) । मग्गओ --पीछे (नंदी १३ ) | मग्गण्णिर — अनुगमनशील (दे ६।१२४) 1 मग्गतो -- पृष्ठतः, पीछे से- 'अण्णयरे पुरिसे मग्गतो आगम्म' (भ १।३७० ) । मग्गमग्गी-पीछे-पीछे ( आवहाटी १ पृ २५६) । मग्गरिमच्छ - एक प्रकार का मत्स्य ( प्रज्ञा १०५६ ) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016051
Book TitleDeshi Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1988
Total Pages640
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size19 MB
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