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________________ ३२२ भोअ-भाड़ा, किराया (दे ६।१०८ ) । भोइ -१ सम्मान-सूचक- सम्बोधन - भोइ त्ति भवति ! आमंत्रणमेतत्' ( उसुटी प २१० ) । २ पत्नी - 'भोइति भारिया' ( निचू ४ पृ ६७ ) । भोइक - गृहस्वामी, पति ( निचू २ पृ १८२) । भोइत – गृहस्वामी, पति ( निभा १३६४) । भोइय - १ ग्रामप्रधान, गांव का मुखिया ( उ १५६; दे ६ | १०८ ) | २ गारुडक, मंत्र-तंत्र से विष उतारने वाला ( उसुटी प १७४) । ३ पति ( उसुटीप २) । भोइया - १ भार्या, पत्नी ( निचू ३ पृ ४८८ ) । २ वेश्या (व्यभा ७ टी प ४३ ) । देशी शब्दकोश भोई - - भार्या ( पिनि ३६८ ) । भोज्ज - गुरुस्थानीय व्यक्ति विशेष - 'भोज्जा गुरुत्थाणीया' (आचू पृ ३३१) । भोतिग- पति ( निचू २ पृ ३८३) । भोतिगा - पत्नी ( आचू पृ ३४८ ) । भोतिया - पत्नी (निचू ३ पृ ε२) । भोती - भार्या (व्यभा ४। २ टी प ६७) । भोत्तूण - भृत्य, नौकर (दे ६ । १०६ वृ ) । भोयग - १ ग्राम का मुखिया (आवचू २ पृ १८० ) । २पति ( निभा ५०८१) । भोयडा-लाट देश में जिसे 'कच्छा' कहा जाता है, भोयगुग्गुलि - कापालिक के पात्र का ढक्कन विशेष ( निचू २ पृ ३८ ) । उसीको महाराष्ट्र में 'भोडा' कहते हैं । कन्याएं इसे बचपन से लेकर विवाहित होने तथा गर्भवती होने तक पहनती हैं। जब वे गर्भधारण कर लेती हैं, तब सामूहिक भोज किया जाता है । उस भोज में सगे-संबंधी एकत्रित होते हैं और वे तब उस गर्भवती कन्या को अन्य शाटक पहनने के लिए देते हैं । उसके पश्चात् वह कन्या 'भोयडा' पहनना छोड़ देती है - "भोयडा णाम जा लाडाणं कच्छा सा मरहट्ठयाणं भोयडा भण्णति । तं च बालप्पभिति इत्थिया ताव बंधंति जाव परिणीया, जाव य आवण्णसत्ता जाया ततो भोयणं कज्जति सयणं मेलेऊण पडओ दिज्जति, तप्पभिडं फिट्टइ भोयडा ' ( निचू १ पृ ५२ ) भोरुड - भारुण्ड- पक्षी (दे ६ १०८ ) | 1 भोलिय - वंचित, ठगा हुआ - विसएहिं भोलि हं' (उसुटी प ४७)। भोल्लय – पाथेय - विशेष, प्रबन्ध - प्रवृ र पाथेय, य त्रा-पाथेय (दे ६।१०८) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016051
Book TitleDeshi Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1988
Total Pages640
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size19 MB
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