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________________ देशी शब्दकोश भिमियमच्छ— मत्स्य की जाति - विशेष ( जीवटी प ३६ ) । भिभिसमाण – अत्यंत दीप्यमान ( ज्ञा १।११८६) भिमोर - हिम का मध्य भाग (?) (प्रा २ । १७४ ) | भिरिंड - कुए की मेंढ - ' जुण्णकूवभिरिंडे तणपूलितं गहाय उस्चिति' (आवचू १ पृ २१० ) । भिरुइय - ठगा जाना, वंचित- कयाइ कहं पिन भिरुइओ होमि, ता णिहुयं होऊण पेच्छामि' ( कु पृ २५१) । भिलंग - १ धान्य- विशेष, मसूर (दश्रु ६।१८ ) । २म्रक्षण ( सूचू १ पृ ११६ ) * भिलंगाय - प्रक्षणक, चुपडना, अभ्यंगन - तेल्लं मुहे भिलंगाय - मुहमक्खणयं तेल्लं अणेहि' (सूचू १ पृ ११६) । भिलिंग - १ म्रक्षण - तेल्लं मुहे भिलिंगाय' ( सू ११४ | ३६ ) | २ धान्य- विशेष, मसूर (आवचू २ पृ १२० ) । भिलिंगाय -- म्रक्षणक, चुपड़ना - भिलिंगाय त्ति देसी भासाए मक्खणमेव ' (सूच १ पृ ११६) । भिलजाय - प्रक्षण, अभ्यंग ( सू १ | ४ | ३६ पा ) | भिलुंग - हिंसक पक्षी - वणसंडंसि बहवे मिलूंगा नाम पावसउणा परिवसंति' ( राज ७०३) । भिलुगा - फटी हुई जमीन - भिलुगत्ति स्फुटितकृष्णभूराजि: ' ( आचूला १।५३ टी प ३३७ ) । भिलुया - फटी हुई जमीन, जमीन की दरार ( आचूला १०।१७ ) । भिलुहा - भूमी की दरार- - कण्हभूमिदली भिलुहा' ( दअचू पृ १५६ ) । भिल्लिरी - मछली पकड़ने का एक प्रकार का नाल ( विपा ११८१६ ) । भिल्लुगा -- भूमी की रेखा ( आचूला १।५३ पा ) । भिसंत अर्थ (दे ६।१०५) । भिसमाण – दीप्यमान ( ज्ञा १|१|58 ) । भिसरा - जाल - विशेष ( विपा ११८ | १९ ) । भिसिगा – आसन - विशेष ( सू २।२।२५ ) । ३१६ भिसिया - बृसी, ऋषि का आसन (भ २।३१; दे ६।१०५) । भिसोल - नृत्य - विशेष ( स्थाटी प २७२ ) । भीराहि - सर्प की जाति - विशेष - 'भी राहि गोणसो वत्ति अजो अजगरोत्त वा' (अंवि पृ ६३) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016051
Book TitleDeshi Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1988
Total Pages640
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size19 MB
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