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________________ देशी शब्दकोश २८१ पाए-प्रभृति, वहां से प्रारम्भ कर-'जत्तो पाए खेत्तं, गया उ पडिले हगा ततो पाए' (बृभा १५३८) । पांडविअ-पानी से आर्द्र (दे ६।२०)। पागडा-पैर का आभूषण-'चरणमालिका—संस्थानविशेषकृतं पादाभरणं ___ लोके पागडा इति प्रसिद्धं' (जंबूटी प १०६) । पाघट्टिका-पैर का आभूषण-विशेष, पायजेब (संवि पृ ७१) । पाट्टालिका-पाढल का फूल (अंवि पृ ७०) । पाडच्चर-आसक्त चित्तवाला (दे ६।३४) । पाडल -१ हंस । २ वृषभ । ३ कमल (दे ६१७६) । पाडलसउण-हंस (दे ६।४६) । पाडलसउणय-हंस (दे ६।४६ वृ) । पाडवण--पाद-पतन, प्रणिपात (दे ६।१८) । पाडिअग्ग ---विश्राम (दे ६।४४)-'रे हलिय ! पाडिअग्गं कुण इण्हि' (व)। पाडिअज्झ--पिता के घर से वधू को पति के धर ले जाने वाला (दे ६।४३) । पाडिया--उत्तरीय वस्त्र (भ १५॥५१) ।। पाडिसार-पटुता, निपुणता (दे ६।१६) । पाडिसिद्धि -१ स्पर्धा । २ सदृश । ३ समुदाचार (दे ६१७७) । पाडिसिरा-खलीनयुक्त (दे ६।४२) । पाडिहच्छी-मस्तक की माला (दे ६।४२ व)। पाडिहत्थी-मस्तक पर स्थित माला (दे ६१४२ व)। पाडुकी-व्रणी-शिविका, घायल के लिए बैठने की शिविका (दे ६।३६) । पाड्गोरि--१ विगुण, गुणहीन । २ मद्य में आसक्त। ३ मजबूत वेष्टन वाली बाड (दे ६।७८)-'यदाह-पाडुंगोरी च वृतिर्दीर्घ यस्या विवेष्टनं परितः' (वृ)। पाडक्क-१ समालंभन, शरीर पर चन्दन आदि का उपलेप। २ पटु, निपुण (दे ६१७६)। पाडुच्चिय --सजा हुआ अश्व (दे ६।३६ )। पाडुच्ची-अश्व-मंडन, अश्व को सजाना (दे ६।३९) । पाडहअ-१ साक्षी (आवहाटी १ पृ ४२) । २ प्रतिभू, जमानत करने वाला (दे ६।४२)। पाढा-वनस्पति-विशेष (भ २३।६)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016051
Book TitleDeshi Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1988
Total Pages640
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size19 MB
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