SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 28
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २७ प्रस्तुत कोश ग्रंथ में ८ अध्याय तथा ७८३ गाथाएं हैं। इसमें ३९७८ शब्दों का संकलन है। सभी शब्द अकारादि क्रम से संगहीत हैं। इस पर उनकी स्वोपज्ञ टीका भी है। शब्दों के अर्थावबोध के लिए उन्होंने ६३४ उदाहरण गाथाएं भी दी हैं। आचार्य हेमचन्द्र ने शब्दों को देशी मानने की कुछेक कसौटियां दी हैं। इन कसौटियों पर सभी शब्द खरे नहीं उतरते-- यह अवधारणा व्याख्याकार रामानुज, पिशेल और बनर्जी आदि विद्वानों की है। अनेक ऐसे शब्द भी हैं जिन्हें शब्दानुशासन में संस्कृत मानकर सिद्ध किया गया है तथा जो इस कोश में भी समाविष्ट कर दिये गये हैं । डॉ. शिवमूर्ति शर्मा ने इसके तत्सम,तद्भव एवं देशीशब्दों का लेखा इस प्रकार प्रस्तुत किया है तत्सम शब्द १००। संशययुक्त तद्भव ५२८ । गर्भित तद्भव १८५० । देशीशब्द १५०० । इन १५०० देशीशब्दों में से ८०० शब्द भारतीय आर्यभाषाओं में प्राप्त होते हैं तथा ७०० शब्द आर्येतर भाषाओं से संबंधित बताये जाते हैं। _ विद्वानों का मंतव्य है कि हेमचन्द्र द्वारा दी गई कसौटियों पर केवल १५०० शब्द खरे उतरते हैं। किन्तु आचार्य हेमचन्द्र ने प्रायः प्रत्येक शब्द को देशी मानने में तर्क प्रस्तुत किया है तथा अनेक आचार्यों के मतों का उल्लेख भी किया है। देशीनाममाला के कई शब्द संस्कृत से व्युत्पन्न किये जा सकते हैं, किन्तु अर्थ की दृष्टि से वे पूर्णतः देशी हैं। स्वयं आचार्य हेमचन्द्र ने अपनी स्वोपज्ञ वृत्ति में स्थान-स्थान पर स्पष्टीकरण दिया है तथा उन शब्दों को देशी मानने का कारण युक्तिपुरस्सर समझाया है। जैसे व्यभिचारी अर्थ का द्योतक 'अविणयवर' शब्द संस्कृत के 'अविनयवर' शब्द से सहज व्युत्पन्न किया जा सकता है, किन्तु संस्कृत कोशों में इस अर्थ में अप्रसिद्ध होने से इसे देशी में संगृहीत किया है। अगुज्झहर-अगुह्यधर, अचिरजुवइ-अचिरयुवति आदि शब्दों की भी यही स्थिति है।' 'अण्णइअ' शब्द तृप्त अर्थ का वाचक है। इसे संस्कृत के 'अन्नचित' शब्द से निष्पन्न किया जा सकता है, किन्तु उसका अर्थ तृप्त न होकर 'अन्न से पुष्ट' होता है । अतः तृप्त अर्थ का वाचक 'अण्णइअ' शब्द देशी है।' १. देशीनाममाला का भाषा वैज्ञानिक अध्ययन, पृष्ठ ५६ । २. देशीनाममाला, १११८ वृत्ति । ३. वही, ११६ वृत्ति। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016051
Book TitleDeshi Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1988
Total Pages640
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy