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________________ देशी शब्दकोश १६३ झलुंकिअ-जला हुआ, दग्ध (दे ३३५६) । झलुसिअजला हुआ (दे ३।५६) । झल्लमल्ल-परिपूर्ण, भरा हुआ (विभाकोटी पृ २६४) । झस--१ अयश, अकीर्ति । २ तट, किनारा । ३ छैनी से कटा हुआ । ४ तटस्थ, मध्यस्थ ।। ५ दीर्घ-गंभीर, लंबा और गंभीर, बहुत गहन (दे ३।६०)। ६ शस्त्र-विशेष (कु पृ १९८)। झसिअ-१ पर्यस्त, उत्क्षिप्त । २ आक्रुष्ट, जिस पर आक्रोश किया गया हो वह (दे ३।६२) । झसुर-१ ताम्बूल, पान । २ अर्थ, प्रयोजन (दे ३।६१) । झाउल-कसि-फल, डोडा (दे ३१५७) । साड-झाड़ी, निकुंज (निचू ३ पृ २६७; दे ३३५७) । झाम---दग्ध (जीव ३।६६)। झामण-जलाना (जीभा २३२३)। झामणिक-जलानेवाला (मंवि पृ २५४) । झामर-वृद्ध, बूढा (दे ३३५७) । मामल-आंखों का रोग-विशेष-पुत्तसोगेण य, से किल झामलं चखं जायं रुयंतीए' (आवहाटी १ पृ.६६) । झांवला (राज)। झामरो (गुज)। शामित-दग्ध (जीभा २३२१)। झामिय–१ जलाया हुमा, दग्ध (भ ५५१; दे ३३५६) । २ श्यामल । ३ कलंकित । झारा-झींगुर, क्षुद्र कीट-विशेष (दे ३।५७) । झिखिअ-लोकापवाद, लोक-निन्दा (दे ३१५५) । झिगिर–त्रीन्द्रिय जन्तु-विशेष, झींगुर (प्रज्ञा ११५०)। झिगिरिड-त्रीन्द्रिय जन्तु-विशेष (प्रज्ञा ११५०) । झिझिय-बुभुक्षित, भूखा-'आउरे झिंझिए पिवासिए तवस्सी' (बु ४।२८) । झिज्झिरि-वल्ली-विशेष (आचूला १।१०८)। झिज्झिरी-वल्ली-विशेष (आचू पृ ३४१) । झिमिय--जड़ता, शरीर के अवयवों का अकड़ जाना (आ ६।८) । झिरिंड -जीर्ण कूप (दअचू पृ १००, दे ३१५७) । झिल्लिय-त्रीन्द्रिय जन्तु-विशेष, झिल्ली (प्रज्ञा ११५०) । झिल्लिरिआ-१'चीही' नामक तृण । २ मशक, मच्छर (दे ३१६२)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016051
Book TitleDeshi Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1988
Total Pages640
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size19 MB
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