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________________ १९६ देशी शब्दकोश जोइर-स्खलित (दे ३।४६) । जोइल्लय-कीट-विशेष, इन्द्रगोप (आवचू २ पृ ८३)। जोइस- नक्षत्र (दे ३४६) । जोई-विद्युत् (दे ३।४६) । जोक्ख---.मलिन (दे ३।४८) । जोग्गा-चाटु, खुशामद (दे ३।४८) । जोड-१ नक्षत्र (दे ३४६) । २ रोग-विशेष । ३ जोड़ी, युगल । जोडिअ-१ व्याध, शिकारी (दे ३।४६) । २ जोड़ा हुआ, संयुक्त किया हुआ। जोडिऊण-जोड़कर, संयुक्त कर-जोडिऊण करजुयलं कहिओ सुविणगवइयरो' (उसुटी प ६३)। जोण्णलिआ-धान्य-विशेष, जुआरि (दे ३३५०) । जोय-युग्म, जोड़ा (भ ११११५६) । जोयण-देखना-'उवओग चंदजोयण, साहुत्ति विगिचणे णाणं' (जीभा १४१७)। जो रं-वाक्य के आदि में प्रयुक्त 'जो' का अर्थ है-यह तथा 'र' का अर्थ है निश्चय-'जो रं च जो किरस्थम्मि' (दे ३।४८) । जोव-१ बिन्दु । २ अल्प (दे ३३५२) । जोवण-१ यन्त्र । २ धान्य का मर्दन । ३ धान की बुवाई-'जोवणं-धान्य प्रकरः । प्रकरो मर्दनं धान्यस्य, लाटविषये जोवणं धण्णपइरणं भण्णइ' (ओटी पृ १६६)। जोवारि-धान्य-विशेष, जुआरि (दे ३०५०)-'जोवारी शब्दोऽपि देश्य एव (व) । जोव्वण-मध्य भाग (से २॥१)। जोव्वणणीर-वृद्धत्व, बुढ़ापा (दे ३१५१)-'जोवणणीरं तरुणत्तणे विजिएन्दिआण पुरिसाण' (वृ)। जोव्वणवेअ -बुढ़ापा, वृद्धत्व (दे ३१५१) । जोव्वणोवय---बुढ़ापा, वृद्धत्ब (दे ३३५१) । जोहार-जयकार, नमस्कार-'जयोत्कारकरणं पित्रादीनाम्' (प्रसाटी प १०५)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016051
Book TitleDeshi Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1988
Total Pages640
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size19 MB
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