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________________ १८ शब्द आते हैं । इनकी संस्कृत पर्याय खोजी जा सकती है । जैसे- पुआई इसका अर्थ है पिशाच । इसी प्रकार ऊणंदिअं -- आनंदित, टोम्बरो आदि । तुम्बुरु २. गोणाद्याः ' - ये वे देशी शब्द हैं जो प्रकृति, प्रत्यय, वर्णागम तथा वर्णविकार से रहित होते हैं । जैसे- गोणो- गाय, वणाइ - वनराजि, आओ-पानी । ३. गहिआद्या : - इस सूत्र में शब्द निर्वचन के विषय बनते हैं तथा इनकी व्युत्पत्ति की जा सकती है । जैसे—- णंदिणी - धेनु, वइरोड - जार, अजडअनलस, संचारी - दूती । ४. वरइत्तगास्तृनाद्यै:- इस सूत्र के अन्तर्गत वे शब्द संगृहीत हैं जो तद्धित के अनेक प्रत्ययों तथा स्वरों की विशेष आयोजना से युक्त होते हैं । जैसे— वरइत्त -- वरयिता, नूतनवर वाअड -- शुक, मइलपुत्ती - रजस्वला, सद्दाल --- नूपुर । ५. अपुण्णगाः क्तेन * - इस सूत्र में सारे क्त प्रत्ययान्त शब्द संगृहीत हैं । जैसे— अपुण्ण - आक्रान्त, उरुसोल्ल - प्रेरित, उक्खिण्ण-अवकीर्ण, णिसुद्ध— निपातित । ६. झाडगास्तु देश्या: सिद्धा: ५ - इस सूत्र के अन्तर्गत वे शब्द संगृहीत हैं जो देश - विशेष में व्यवहृत होते हैं, जो सिद्ध हैं, प्रसिद्ध हैं और निष्पन्न हैं । जैसे -- झाड -- लता आदि का गहन, गोप्पी - बाला, पाणाअअ - चांडाल, सोल्लमांस | आचार्य हेमचन्द्र ने 'गोणादयः ' - इस सूत्र के अन्तर्गत देशी शब्दों का संग्रहण किया है । आधुनिक भाषावैज्ञानिकों ने भी देशी के बारे में पर्याप्त चिन्तन-मनन किया है । जानबीम्स, हार्नले, जार्ज ग्रियर्सन, सुनीतिकुमारचाटुर्ज्या, पी. डी. आदि ने देशी शब्दों की स्वरूप मीमांसा की है । जानबीम्स का कहना है कि शब्द से व्युत्पन्न नहीं किए जा सकते, वाले आदिवासियों की भाषा से लिए विकसित होने से पहले ही स्वयं आर्यों द्वारा आविष्कृत होंगे ।" देशीशब्द वे हैं जो किसी भी संस्कृत इसलिए वे या तो आर्यों से पूर्व रहने गए होंगे या फिर संस्कृत भाषा के निष्कर्ष की भाषा में कहा जा सकता है कि देशी का अर्थ यह नहीं कि केवल वे शब्द जो देशविशेष में प्रचलित हों, किन्तु वे सभी शब्द देशी हैं, जिनका स्रोत संस्कृत में नहीं है चाहे फिर वे किसी देश-भाषा के क्यों न हों। १. प्राकृतशब्दानुशासन, १।३।१०५ । २. वही, १|४|१२१ । ४. वही ३।१।१३२ । ५. वही ३।४।७२ । ३. वही २।१।३० । ७. कम्पेरेटिव ग्रामर आफ माडर्न आर्यन लेंग्वेजज, पृष्ठ १२ । Jain Education International ६. प्राकृत व्याकरण २।१७४ । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016051
Book TitleDeshi Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1988
Total Pages640
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size19 MB
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