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________________ देशी शब्दकोश कप्परिअ-विदारित, फाड़ा हुआ (दे २।२०) । कंप्पांग-डंडा, शस्त्र-विशेष-'सो य मणिप्पहं कप्पागं मग्गइ' (आवहाटी २ पृ १४०)। कप्पासट्टिमिज-त्रीन्द्रिय जंतु-विशेष (उ ३६।१३८) । कप्पासट्ठिसमिजिय-त्रीन्द्रिय जन्तु-विशेष (प्रज्ञा ११५०) । कप्फाड-कंदरा, गुफा (पा ९६८)। कफाड-गुफा, गुहा (दे २१७) । कब्बट्ठ-बालक-'कल्पस्थः समयपरिभाषया बालक उच्यते' (बृभा ८६५ टी)। कब्बट्री-१ तरुण स्त्री (बृभा १८४२) । २ छोटी लड़की-'इह समय परिभाषया कब्बट्ठी लघ्वी दारिका भण्यते' (पिटी प ६१)। कब्बाल--ठेके पर भूमि खोदने वाला-'चत्तारि भयगा पण्णत्ता, तं जहा दिवसभतएकब्बालभयए' (स्था ४।१४७)। कभल्ल-१ मिट्टी का पात्र-विशेष, खप्पर-भज्ज णयकभत्लेइ वा' (अनु ३।३७) । २ खोल, कपाल-'यथा कच्छभो....... अंगाणि कभल्ले संहरति' (दअचू पृ १६५) । कभेइका--कृमि-जाति (अंवि पृ ७०)। कम-मार्ग-'भणंति आयरिया-वेण्णे ! कम देहि त्ति' (निचू ३ पृ ४२५) । कमढ--१ मेल-'जल्लो तु होति कमढं' (निभा १५२२), 'खरंटो उ जो मलो तं कमढं भण्णति' (निचू २ पृ २२१)। २ साध्वियों का पात्रविशेष (पंव ७६०)। ३ दही की कलशी। ४ बलदेव । ५ मुख, मुंह । ६ पिठर, स्थाली (दे २।५५) । ७ कच्छप (व्यभा ३ टी प ६२)। कमढग—पात्र-विशेष (व्य २।२६) । कमढय-पात्र-विशेष- लेपिततुम्बकभाजनरूपं कांस्यमयबृहत्तरकरोटिका कारमेकैकं संयतीनां निजोदरप्रमाणेन विज्ञेयम्' (प्रसाटी प १२५)। कमढित--धूणित, निमग्न-'निहाकर्माढतो जोण्हं मण्णमाणो दिवा' (निचू ३ पृ २६७) । कमणिल्ल-जूते पहने हुए (निभा ६२५) । कमणी-निःश्रेणी, सीढी (दे २।८)। कमल-१ हरिण, मृग (अनुद्वहााटी पृ १६; दे २।५४) । २ पिठर, स्थाली। ३ पटह, ढोल । ४ मुख, मुंह (दे २।५४)। ५ झगड़ा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016051
Book TitleDeshi Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1988
Total Pages640
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size19 MB
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