________________
देशी शब्दकोश
कणइल्ल-शुक, तोता (दे २।२१) । कणई-लता (दे २१५)। कणंगर-पाषाणमय लंगर (विपा श६।१७)। कणक-बाण-'नाराय-कणक-कप्पणि-वासि-परसु' (प्र ११२८)। कणकाली-अस्तर-विशेष (ज्ञाटी प १६) । कणग-१ ग्रह-विशेष-'कणगा गिम्हे सिसिरे पंच वासासु सत्त उवहणंति'
(निचू ४ पृ २४५) । २ चतुरिन्द्रिय जंतु-विशेष (जीवटी प ३२)। कणय-१ बाण (भ २।८९; दे २१५६) । २ बिल्व, बेल (उशाटी प १४२) ।
३ अवचय, फूलों का चुनना (दे २१५६)। कणयंदी-पाटला, पाढर वृक्ष (दे २।५८ वृ)। कणिआरिअ-कटाक्ष, टेढी नजर से देखना, कानी आंख से देखना
(दे २।२४)। कणिक्क---मत्स्य की एक जाति (जीवटी प ३६) । कणिक्का-समित, आटा-समिता-कणिक्का सा महुघएहि तुप्पेउं महिउं
च भगंदले छुभति ते किमिया तत्थ लग्गति' (निचू १ पृ १००)। कणिस-शस्य का तीक्ष्ण अग्रभाग (उपाटी पृ ६६; दे २।६) । कणिसवाया-धान्य का अग्रभाग (कु पृ १५३) । कणी-फडकना, धड़कना (पा ९८५) । कणुय-१ त्वक् का अवयव-विशेष । २ गुठली का तुषरहित अवयव
___ (आचू पृ ३४०)। कणेरु–हथिनी (अंवि पृ ६६)। कणोडिआ-गुंजा, घुङ्गची (दे २।२१)। कणोवअ-गरम किया हुआ जल, घृत, तैल आदि (दे २११६) । कण्ण-१ गोल आकृति-'जहानामए कण्णावली य गोलावली य वट्टावली य' ' (अनु ३।३६) । कण्णे-गोला, गोलाकृति (कन्नड़)। २ कोण
(निचू १ पृ६६)। कण्णंबाल-कान का आभूषण, कुण्डल आदि (दे २।२३)। कण्णच्छुरी-गृहगोधा, छिपकली (दे २।१६) । कण्णत्तिय-खेचर पंचेन्द्रिय प्राणी-विशेष (जीवटी प ४१)। कण्णरोडय-कानों को बहरा करने वाला (शब्द)-'सो तीसे कण्णरोडयं
__ असहतो भणति' (आवहाटी १ पृ ६०) ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org