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________________ स्वकथ्य प्रस्तुत ग्रन्थ आगम कल्पवृक्ष की एक उपशाखा है । जैसे-जैसे समय बीता, वैसे-वैसे आगमवृक्ष का विस्तार होता गया। आगम शब्दकोश की कल्पना आगम संपादन कार्य के साथ-साथ हुई थी, किन्तु उसकी क्रियान्विति उसके पचीस वर्षों के बाद हुई। इस कार्य के लिए हमने शताधिक ग्रन्थों का चयन किया और वह कार्य प्रारम्भ हो गया। इस विशाल कार्य में निरुक्त, एकार्थक शब्द, देशी शब्द आदि का पृथक् वर्गीकरण किया गया। इस आधार पर उस महान् कोश में से प्रस्तुत कोश का अवतरण हो गया। इस अवतरण कार्य में अनेक साध्वियों, समणियों और मुमुक्षु बहिनों ने अपना योग दिया है। इसे कोश का रूप दिया है समणी कुसुमप्रज्ञा ने । मुनि दुलहराज की श्रम-संयोजना और कल्पना ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यह एक सुखद संयोग है कि आगम शब्दकोश तथा उसकी शाखा-विस्तार का सारा कार्य महिला जाति के द्वारा संपन्न हुआ है। वैदिक और बौद्ध साहित्य में निरुक्त अथवा एकार्थक शब्दों पर कार्य हुआ है, किन्तु जैन आगम साहित्य पर इस प्रकार का कार्य नहीं हुआ था। समीक्षात्मक और तुलनात्मक दृष्टि से इसमें कार्य करने का पर्याप्त अवकाश है, फिर भी प्रारंभिक स्तर पर जिस सामग्री का संकलन हुआ है वह कम मूल्यवान् नहीं है। जिन-जिन व्यक्तियों ने इस कार्य में अपना योग दिया है, उन्हें साधुवाद और उनके लिए मंगल भावना है कि उनकी कार्य-क्षमता उत्तरोत्तर बढ़े और समग्र आगम शब्दकोश की संपन्नता में उनका कर्तृत्व और अधिक निखार पाए। लाडनूं -आचार्य तुलसी १५-१-८४ .--युवाचार्य महाप्रज्ञ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016050
Book TitleEkarthak kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages444
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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