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________________ आनुपूविन्-आमेलक : २५ आनुपूविन्-क्रम । आनुपूर्वी अनुक्रमोऽनुपरिपाटीति पर्यायाः। (अनुद्वामटी प ४६) आनुपूर्व्यनुक्रमः परिपाटी। (उचू पृ २६) आपिबति--ग्रहण करता है। ___ आपिबति आदियति त्ति एगट्ठा ।' (दशजिचू पृ ६३) आपूरित-व्याप्त । ___आपूरितं व्याप्तं भूतं वासितम् । (विभामहेटी १ पृ १२७) आप्त-वीतराग पुरुष। आप्तः मोक्षमार्गगामी आत्महितगामी वा प्रक्षीणदोषः सर्वज्ञः । (सूटी १ प १९६) आप्त-प्रिय । आप्ता इट्ठा कंता पिया। (दश्रुचू प २७) आभिणिबोहिय–मतिज्ञान । ईहा अपोह वीमंसा, मग्गणा य गवेसणा । सण्णा सई मई पण्णा सव्वं बाभिणिबोहियं ॥ (नंदी ५४) आभोग-- उपयोग (मनोयोग) आभोग मग्गण गवेसणा य ईहा अपोह पडिलेहा । पेक्खणनिरिक्खणावि अ आलोयपलोयणेगट्ठा ॥ (ओनि ३) आभोगण-आसेवन करना। आभोगणं ति वा मग्गणं त्ति वा झोर ति वा एगलैं । (व्यभा ४/१ टी प २४) आमेलक-मुकुट । आमेलक: आपीडः शेखरकः । (राजटी पृ १६५) १. देखें-परि० ३ ३. देखें-परि० २ २. देखें-परि० २ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016050
Book TitleEkarthak kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages444
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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