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________________ परिशिष्ट २ : ३६७ वक्क (वाक्य) _ 'वक्क' के एकार्थक में बारह शब्दों का उल्लेख है । कुछ शब्दों की अर्थध्वनि इस प्रकार है१. वचन---जो अर्थ को अभिव्यक्त करता है। २. गिरा-जो भाषा वर्गणा के पुद्गलों का भक्षण करती है।' ३. सरस्वती-जो स्वरयुक्त होती है । ४. भारती-जो अर्थभार को धारण करती है । ५. गो-जो मुख से निःसृत होकर लोकान्त तक पहुंच जाती है । ६. भाषा-जो बोली जाती है । ७. प्रज्ञापनी—जिसके द्वारा अर्थबोध किया जाता है। ८. देशनी-जो अर्थ का देशन/कथन करती है । ६. वाग्योग-जीव की वाचिक प्रवृत्ति । १०. योग-शुभ और अशुभ का योग करने वाली । वध (वध) _ 'वध' आदि शब्द पीड़ित करने के अर्थ में समानार्थक हैं। पीड़ित करने के साधनों की भिन्नता होने पर भी इनमें पीड़ा की समानता है१. वध--यष्टि आदि से मारना। २. बन्धन-बांधना। ३. ताडन-पीटना। ४. अंकन-तप्त लोहे की शलाका से चिन्हित करना। ५. निपातन-गड्ढे आदि में फेंकना। ६. विधात-चोट पहुंचाना । ववण (वपन) __'ववण' आदि शब्द बीज-वपन की विवध प्रक्रियाओं के द्योतक १. वपन-सामान्यतः बीज बोना। १. पशअचू पृ १५६ : वक्क एगठिताणि। . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016050
Book TitleEkarthak kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages444
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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