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________________ ३६२ । परिपिष्ट २ को मोहनीय की संज्ञा दी गयी है। कषाय चार हैं-क्रोध, मान, माया और लोभ । इनमें क्रोध के दस, मान के ग्यारह, माया के सतरह और लोभ के चौदह-इस प्रकार चार कषायों के ५२ भेद मोहनीय के पर्याय मान लिए गये हैं। इसके अतिरिक्त भगवती सूत्र में क्रोध आदि चारों कषायों के भिन्न भिन्न पर्याय शब्दों का उल्लेख मिलता है जो प्रायः इन शब्दों से समानता रखते हैं। विशेष व्याख्या के लिए देखें-'क्रोध', 'मान', 'माया' और 'लोभ'। रज्ज (राज्य) राज्य, देश और जनपद-ये तीनों शब्द वसति के वाचक हैं। १. राज्य-सम्पूर्ण राष्ट्र । २. देश-प्रान्त । ३. जनपद-प्रान्त की ईकाई (जिला) । इसके अतिरिक्त ग्राम, नगर, निगम, राजधानी, खेट, कर्बट, मडंब, द्रोणमुख, पत्तन, आकर, आश्रम, संवाह, सन्निवेश आदि शब्द भी वसति के प्रकार हैं। ये सभी शब्द यद्यपि क्षेत्ररचना की दृष्टि से भिन्न-भिन्न हैं, लेकिन वसति के रूप में इनको एकार्थक माना है। रयस् (रयस्) रय का अर्थ है-वेग। चेष्टा, अनुभव और फल इसी अर्थ के वाचक हैं । वृत्तिकार ने इन्हें एकार्थक माना है।' इनको एकार्थक मानने का रहस्य सुबोध नहीं है। रहस्स (ह्रस्व) _ 'रहस्स' शब्द के एकार्थक के रूप में तेवीस शब्दों का उल्लेख है। यहां 'संपिडित' 'सन्निरुद्ध' आदि शब्द ह्रस्व अर्थ के अन्तर्गत लिये गए हैं। जो रोका हुआ होगा, वह एकत्रित होने के कारण विस्तृत नहीं होगा। इसी दृष्टि से आकुंडित (आकुञ्चित), संवेल्लित (दे) आदि शब्द जो संवृत या संकुचित के अर्थ में हैं, वे भी अल्प या ह्रस्व के ही द्योतक १. आवहाटी १ पृ २६३ । Jain Education International For Private & Personal. Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016050
Book TitleEkarthak kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages444
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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