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________________ ३५८ । परिशिष्ट २ हैं । लेकिन क्षीण, निष्ठित, परिमलित, परिशुष्क, परिशटित आदि शन्दः वृद्धावस्था से होने वाली परिणतियों के द्योतक होने से एकार्थक हैं। महापउम (महापद्म) ___ आगामी चौबीसी के प्रथम तीर्थंकर महापद्म (श्रेणिक का जीव) सन्मति कुलकर की पत्नी भद्रा की कुक्षि में जन्म लेंगे। जब उनका जन्म होगा तब शतद्वार नगर में बहुत विशाल पमों की वर्षा होगी, इसलिए बालक का नाम 'महापद्म' रखा जाएगा। कुमारावस्था में देव उनका सहयोग करेंगे, अतः उनको 'देवसेन' कहा जायेगा। राजा होने के पश्चात् उनका मुख्य वाहन विमल, चतुर्दन्त हस्तिरत्न होगा, इसलिए उनका नाम 'विमलवाहन' रखा जायेगा। इस प्रकार ये तीनों ही नाम सार्थक-गुणनिष्पन्न हैं।' माण (मान) ___ मान के एकार्थक के प्रसंग में भगवती सूत्र में बारह नामों का उल्लेख है । यद्यपि सामान्य रूप से ये सभी एकार्थक हैं, लेकिन प्रत्येक शब्द मान की उत्तरोत्तर अवस्था को प्रकट करते हैं।' १. मान-अभिमान की सामान्य अवस्था । २. मद-प्रसन्नता से होने वाला उत्कर्ष भाव । ३. दर्प-सफलता पर होने वाला अहंकार अथवा उन्मत्तता (मदोन्मत्तता)। ४. स्तम्भ-खम्भे की भांति अकड़कर रहना । ५, गर्व-शारीरिक स्तर पर विशेष रूप से दिखाई देने वाला अहंकार । जैसे-नाक फूलना, गर्दन कड़ी रहना आदि । ६. अत्युत्क्रोश-दूसरों के सामने अपने गुणों का कीर्तन करना और स्वयं को श्रेष्ठ बताना। इस स्थिति में अहं वाणी में प्रकट होने ___ लगता है। ७. परपरिवाद-दूसरों की निंदा करना व उनकी विशिष्टता का अपलाप करना। ८. उत्कर्ष--अभिमानवश अपनी समृद्धि व ऐश्वर्य का दिखावा करना। १. स्था १/६२। २. भटी पृ १०५१ : मान इति सामान्य नाम मदादयस्तु तद्विशेषाः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016050
Book TitleEkarthak kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages444
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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