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________________ ४. समवाय-- वणिकों का समूह । ५. समवसरण - तीर्थंकरों की परिषद्, अनेक वादियों का मिलन -स्थल | ६. निचय — सूअर आदि पशुओं का संघात । ७. उपचय - पूर्व समूह में वृद्धि होना । ८. चय - ईटों की रचना, दीवार आदि बनाना । परिशिष्ट २ 3 ३५१ ६. युग्म - दो पदार्थों का मिलना । १०. राशि - ढेर | * पितवण्ण ( पीतवर्ण) 'पितवण्ण' और पीतक ये दोनों शब्द पीले रंग के स्पष्ट पर्याय हैं । पद्मकेशर व तिगिच्छ ( पराग ) का रंग पीला होता है अतः इनको भी पीतवर्ण का पर्याय माना है । पितामह (पितामह) 'पितामह' शब्द के पर्याय में चार शब्दों का उल्लेख है । ये सारे शब्द ब्रह्मा के द्योतक हैं । इनका आशय इस प्रकार है ब्रह्म - जिसमें सारी सृष्टि वृद्धिगत होती है । ' स्वयंभू -- जो स्वयं पैदा होता है । प्रजापति - समस्त सृष्टि का स्वामी तथा उसका पालनकर्ता । पीणणिज्ज ( प्रीणनीय ) आहार का एक कार्य है— शरीर को पुष्ट करना । विभिन्न प्रकार के आहार शरीर के रस, धातु, मांस आदि को पुष्ट करते हैं, इसलिए समवेत रूप में इन्हें एकार्थक माना है १. प्रीणनीय -- सप्त धातुओं को सम करने वाला । २. दीपनीय - दृप्त करने वाला, जठराग्नि को प्रदीप्त करने वाला । ३. दर्पनीय - बलवर्धक । ४. मदनीय — कामोत्तेजक । ५. बृहणीय-- शरीर को उपचित करने वाला । १. अचि पू ५२ : बृहन्ति वर्धन्ते चराचराणि भूतान्यत्र ब्रह्मा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016050
Book TitleEkarthak kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages444
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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