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________________ ३४२: परिशिष्ट २ ૬૪૨ प्रयुक्त हैं। सभी शब्द उनकी विभिन्न विशेषताओं को व्यक्त करते हैं जैसे—-- निष्ठितार्थ - अपने लक्ष्य को प्राप्त । निरेजन - निश्चल । नीरज - कर्म-रज से मुक्त | निर्मल - पवित्र । वितिमिर — केवल ज्ञान से आलोकित । विशुद्ध - कर्मों की विशुद्धि से प्रकर्ष स्थिति को प्राप्त । नियाग ( नियाग) नियाग का अर्थ है -- मोक्ष । सद्धर्म मोक्ष का साधन है । अन्तिम अवस्था में साधन ही साध्य के रूप में परिणत हो जाता है, अतः ये तीनों शब्द एकार्थक हैं । निव्वाण (निर्वाण ) देखें – 'अणुत्तर' । निस्सोल ( निश्शील ) 'निस्सील' आदि शब्द व्रत-संवर रहित ( असंयमी ) व्यक्ति के लिए प्रयुक्त हैं। चारों शब्दों की क्षेत्र सीमा भिन्न होते हुए भी समान अर्थ को व्यक्त करते हैं निश्शील - ब्रह्मचर्य आदि व्रत से रहित । निर्व्रत — अहिंसा व्रत अथवा अणुव्रतों से रहित । निर्गुण - क्षान्ति आदि दस श्रमण गुणों से विकल । निर्मर्याद - आचार सम्बन्धी मर्यादा से रहित । नील (नील ) नील के दो अर्थ हैं -- काला और नीला । यहां नील शब्द काले रंग का प्रतीक है । अंधकार और रात्रि का रंग काला है, अतः गुण के साधर्म्य से इन दोनों शब्दों को काले रंग का पर्याय माना है । १. औपटी पृ २१७ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016050
Book TitleEkarthak kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages444
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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