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________________ - चूर्णिकार ने व्युत्पत्तिकृत भेद इस प्रकार किया है— द्रुम जो धरती और आकाश के बीच में समाता है । पादप - जो पैरों (जड़ों) से पीता है । रुक्ख - जो पृथ्वी से आहार ग्रहण करता है । ' विटपी - जो शाखाओं से सुशोभित होता है अग - जो गति नहीं करता । तरु -- जिससे नदी में तैरा जाता है । कुह — जो भूमि के द्वारा धारण किया जाता है । महीरुह — जो पृथ्वी पर उगता है । वच्छ - जो पुत्र की भांति स्नेह से पाला जाता है । रोपक – जिसे पृथ्वी पर रोपा जाता है । भञ्जक — जो काटा जाता है ।" १. दुमपुष्पिका २. आहारएषणा ३. गोचर दुमपुफिया (द्रुमपुष्पिका ) दशवेकालिक सूत्र के वृत्तिकार हरिभद्रसूरि (वि० आठवीं शताब्दी) ने द्रुमपुष्पिका के १४ पर्याय गिनाये हैं ४. त्वक् ५. उंछ परिशिष्ट २ ६. मेष ७. जलूक ८. सर्प ६. व्रण Jain Education International : ३३१ ११. इषु १२. गोलक For Private & Personal Use Only १०. अक्ष द्रुमपुष्पिका - यह दशवैकालिक सूत्र का पहल' अध्ययन है | इसमें मुनि की भिक्षाचर्या सम्बन्धी सूत्र हैं । उन सूत्रों की भावना के अनुरूप इन शब्दों का चयन किया गया है । ये सभी शब्द भोजन की गवेषणा, ग्रहणषणा और परिभोगेषणा अर्थात् भोजन के ग्रहण और उपभोग से सम्बन्धित हैं । इसलिए इन्हें पुष्पिका शब्द के अन्तर्गत गृहीत कर लिया गया है । गोचर शब्द १. निचू २ पृ ३०६ : रुक् पृथिवी तं खातीति रुक्खो । २. दशअचू पृ ७, दश पृ ११ । १३. पुत्रमांस १४. पूर्ति - उदक । www.jainelibrary.org
SR No.016050
Book TitleEkarthak kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages444
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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