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________________ ओयंसि ( ओजस्विन्) महानता एक और अखण्ड होती है । उसके अनेक कोण हैं । वे कोण अखण्ड महानता को ही परिपुष्ट करने वाले होते हैं। यहां चार कोण ये हैं १. ओजस्वी - मानसिक अवष्टम्भ वाला । २. तेजस्वी - शारीरिक कांति से युक्त । ३. वर्चस्वी वचस्वी ४. यशस्वी - ख्याति वाला । परिशिष्ट २ ३०३ - प्रभावशाली अथवा वचनातिशय से युक्त 1 ओराल (उदार) 'ओराल' शब्द के पर्याय में तेरह शब्दों का उल्लेख है । ये सभी शब्द विपुलता और प्रशस्तता का बोध कराते हैं । अन्तकृतदशा की टीका में ये सभी शब्द तप के विशेषण के रूप में एकार्थक माने गए हैं । इनकी अर्थपरम्परा इस प्रकार है १. उदार - आकांक्षा / आशंसा रहित तप । २. विपुल - दीर्घकालीन तप । ३. प्रयत- प्रमाद रहित होकर किया जाने वाला । ४. प्रगृहीत - विशिष्ट व्यक्तियों के द्वारा आचीर्ण । ५. कल्याण-नीरोगकर । ६. शिव - कल्याणकारी । ७. धन्य -- धार्मिक अनुष्ठान के कारण धन्यता से युक्त । ८. मंगल - पाप को शमित करने वाला । ६. सीक - सत् परिणाम देने वाला । १०. उदग्र- उत्तरोत्तर वृद्धि को प्राप्त | ११. उदात्त - निस्पृह तप । Jain Education International १. अंतटी प २६ : एते तपोविशेषणशब्दा एकार्थाः । अर्थमेवविवक्षायां तु प्रथम शतक विवरणाणुसारेण ज्ञेयाः । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016050
Book TitleEkarthak kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages444
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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