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________________ परिशिष्ट २ । २५५ श्लेषणे धातु को विरा आदेश होता है। हेमचन्द का प्राकृत व्याकरण (४१५६) में पविराय और पविलीण इन दोनों को एकार्थक माना है। अविध्वस्त इस अर्थ में स्पष्ट ही है । असण (अशन) अशन, पान, खादिम, स्वादिम आदि शब्द स्पष्ट रूप से अलग अलग अर्थ के वाचक हैं, किन्तु आहार से सम्बन्धित होने से टीकाकार ने इनको एकार्थक माना है। अहासुत्त (यथासूत्र) यथासूत्र आदि सभी शब्द व्रत-पालन की विशिष्ट अवस्था के द्योतक हैं । व्रत-पालन में भावों की निर्मलता, विधि का अनुसरण तथा काल-मर्यादा का परिपालन आवश्यक होता है । ये शब्द इसीकी ओर संकेत करते हैं । इनका अर्थबोध इस प्रकार है१. यथासूत्र -सूत्र के अनुसार । २. यथाकल्प-प्रतिमा आदि व्रत की आचार संहिता के अनुसार । ३. यथामार्ग-ज्ञानादि मोक्ष मार्ग का अतिक्रमण न करना अथवा क्षायोपशमिक आदि भावों का अतिक्रमण न करना । ४. यथातथ्य-स्वीकृत व्रत का व्रत-भावना के अनुसार पालन । ५. यथासम्यक् - अतिचार रहित समभावना से पालन ।' अहिंसा (अहिंसा) अहिंसा के साठ नामों का उल्लेख प्रश्न व्याकरण सूत्र में मिलता है । अहिंसा मूल धर्म है। उसके अंगभूत अनेक गुण हैं जैसे-विरति, दया, विमुक्ति, क्षान्ति, समता, धृति, स्थिति, नन्दा, भद्रा, कल्याण, मंगल, रक्षा, अनाश्रव, समिति, शील, संयम, संवर, गुप्ति, यतना, विश्वास अभय आदि । ये सारे अहिंसा के वाचक हैं। अहिंसा के अभाव में इनका कोई मूल्य नहीं है। अहिंसा है तो ये हैं, अहिंसा नहीं हैं तो १. प्रसाटो प ५१ : परमार्थत एकाथिका एवैते शब्दा इति भेदकल्पनमयुक्तं, एवं समयमणितनिरुक्तविधिनाऽप्येकार्थत्वमेवैषामिति । २. उपाटी पृ ७३॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016050
Book TitleEkarthak kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages444
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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