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________________ ज्य:। सणिहि-सबल : १४७ सण्णिहि-संग्रह। सण्णिही इ वा सण्णिचया इ वा निही इ वा निहाणा इ वा ।' (भ ३/२६८) सद्दहइ-श्रद्धा करता है। ___ सद्दहइ पत्तियइ रोएइ।' (भ ६/२३५) सदूल-सिंह। सदूल सीह चिल्लला ।' (प्र १/६) सन्त्राण-रक्षण । सन्त्राणं-परित्राणं रक्षणमित्येकोऽर्थः । (बृकटी पृ ५८१) सन्धि-छिद्र। सन्धिं छिद्रं विवरं । (सूटी १ प २६) सन्नतपास-सुन्दर पार्श्व वाला। सन्नतपासा संगतपासा सुंदरपासा सुजातपासा । (प्र ४/८) सन्नद्ध-सन्नद्ध। सन्नद्ध बद्ध कवचिय। (ज्ञाटी प २२८) सप्पज्जाय-अस्तित्वयुक्त । सपज्जाय त्ति वा अस्थिभावो त्ति वा विज्जमाणभावो त्ति वा एगट्ठा । (आवचू १ पृ २६) सप्पभ-प्रभा सहित । सप्पभा समिरीया सउज्जोया। (जंबू १/८) सप्पभे समीरिईए सउज्जोवे । (आवचू १ पृ ४७६) सबेल--चितकबरा। सबलो ति वा चित्तलो त्ति वा एगळं। (आवचू १ पृ १३८) १. देर ----परि० २ २. देखें-परि० ३ ३. देखें--परि० २ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016050
Book TitleEkarthak kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages444
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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