SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 146
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पादव-पाव : १०१ पादव-वृक्ष । पादवो व दुमो व त्ति, रुक्खो वा अगमो त्ति वा । तथा थावरकायो त्ति, विडवि त्ति व जो वदे ॥ (अंवि पृ ६३) पामुद्दिका-पैर का आभूषण । पामुद्दिक त्ति वा बूया, वम्मिका पाअसूचिका । तधा पाघट्टिका व ति, तधा खिखिणिक त्ति वा । (अवि पृ ७१) पार-अन्त । पारमन्तगमन मित्येकोऽर्थः । (सूचू २ पृ ३३५) पारण–पूरा करना। पारणं ति वा पालणं ति वा पारगमणं ति वा एगट्ठा । (आवचू २ पृ २५३) पालित-रक्षित। पालितो रक्खितो चेव विन्नेया गुत्त रक्खिते। (अंवि पृ १५७) पाली-मर्यादा (पाल)। पाली मेरा सीमंतिक त्ति। (अंवि पृ २४१) पाव-पाप। पावे वज्जे वयरे, पंके पणये खुहे दुहमसाते । संगे धुण्णे य रए, कम्मे कलुसे य एगट्ठा ।। (आवचू १ पृ ६०६) पावे वज्जे वेरे पंके पणए। (उशाटी प ६७) पाव- -पापी, रौद्र कार्य करने वाला। पावो, चंडो, रुद्दो, खुद्दो, साहसिओ, अणारिओ, निग्घिणो, निस्संसो, महब्भओ, पइभओ, अतिभओ, बीहणओ, तासणओ, अणज्जो, उव्वेयणओ य, निरवयक्खो, निद्धम्मो, निप्पिवासो, निक्कलुणो, निरयवास गमण-निधणो, मोह-महब्भय-पवड्डओ, मरण, वेमणंसो। (प्र १/२) ' १. देखें--परि० २ २. देखें-परि०२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016050
Book TitleEkarthak kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages444
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy