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________________ पणिहि-पत्थेमाण : ६३ पणिहाणं अभिप्पायो चित्तमिति समाएं। (दशजिचू पृ १८०) पणिहि-निक्षेप, प्रक्षेप। पणिहि निक्खिवियं ति वा पणिहाणं ति वा एगट्ठा । (दशजिचू पृ २६५) पण्णत्त-प्रज्ञप्त। पण्णत्तं पण्णवितं प्ररूपितमित्यनर्थान्तरम् । (नंदीचू पृ १३) पण्णवण-प्रज्ञापन । पण्णवण त्ति परूवण त्ति वा विण्णवण त्ति वा एगलैं । (निपीचू पृ १६०) पण्णविय-प्ररूपित। पण्णवियं परूवियं पसिद्धं । (प्र ७/२५) पति-स्वामी। पतिः प्रभुः स्वामी। (निचूभा २ पृ ११८) पतिट्ठा- प्रतिष्ठा, स्थापना। __ पतिढा ठावणा ठाणं, ववत्था संठिती ठिती। अवट्ठाणं अवत्था य, एगट्ठा चिट्ठणा त्ति य ॥ (बृकभा ६३५६) पत्ति-पत्नी (स्त्री)। पत्ति वधु त्ति वा। वधू उपवधू व त्ति, इत्थिया पदम त्ति वा । अंगणा महिला णारी, पोहड़ी जूवति त्ति वा। जोसिता धणिता व त्ति, विलक त्ति विलासिणी। इट्रा कंता पिया व त्ति, मणामा हितइच्छिता। इस्सरी सामिणी व त्ति, तधा वल्लभिक त्ति वा ॥' (अवि पु ६८) पत्थेमाण-चाहता हुआ। पत्थेमाणे पीहेमाणे अभिलसमाणे । (विपा १/५७) १. देखें-परि० २ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016050
Book TitleEkarthak kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages444
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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