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८४ : धम्म-धर्म
धम्म-स्वभाव।
धम्मो त्ति वा सभावो त्ति वा दो वि एगट्ठा। (निचूभा ४ पृ ३७५)
धम्मो सब्भावो लक्खणं ति एगट्ठा। (दजिचू पृ १६) धम्मत्थिकाय-धर्मास्तिकाय।
धम्मे इ वा, धम्मत्थिकाये इ वा, पाणाइवायवेरमणे इ वा, मुसावायवेरमणे इ वा, अदिण्णादाणवेरमणे इ वा, मेहुणवेरमणे इ वा, परिग्गहवेरमणे इ वा, कोहविवेगे इ वा, माणविवेगे इ वा, मायाविवेगे इ वा, लोहविवेगे इ वा, रागविवेगे इ वा, दोसविवेगे इ वा, कलह विवेगे इ वा, अब्भक्खाणविवेगे इ वा, पेसुणविवेगे इ वा, परपरिवायविवेगे इ वा, रइ-अरइविवेगे इ वा, मायामोस विवेगे इ वा, मिच्छादसणसल्लविवेगे इ वा, रियासमिती इ वा, भासासमिती इ वा, एसणासमिती इ वा, आयाणभंडमत्तनिक्खेवणासमिती इ वा, उच्चारपासवणखेलसिंघाणजल्लपरिट्ठावणियासमिती इ वा, मणगुत्ती इ वा, वइगुत्ती इ वा, कायगुत्ती इ वा..... 'सव्वेते धम्मत्थिकायस्स अभिवयणा ।'
(भ २०/१४) धम्ममण-धर्म में रक्त मन वाला।
धम्ममणे अविमणे सुहमणे अविग्गहमणे समाहिमणे । (प्र ६/२०) धम्मिय-धार्मिक।
धम्मिया धम्माणुया धम्मिट्ठा धम्मक्खाई धम्मप्पलोई धम्मपलज्जणा धम्मसमुदायारा।
(सू २/२/७१) धरण-धारणा (मति ज्ञान का भेद)। धरणं अविच्चुती धारणा।
(नंदीचू पृ ३४) धरणा धारणा ठवणा पइट्ठा कोठे ।'
(नंदी ४६) धर्म-धर्म ।
धर्मः स्वभावः सम्यग्दर्शनमित्येकार्थम् । (व्यभा १० टी प ४४) १. देखें- परि० २
४. देखें-परि० २ २. देखें-परि० २
५. देखें-परि० २ ३. देखें-परि० २
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