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________________ (१०) झाये जा सकते है । एक ही विषय के लिये विभिन्न देशों में विभिन्न शब्द प्रयुक्त होते हैं । एकार्थक कोश में उन सब शब्दों का संकलन किया जाता है। अतः विभिन्न देशों के शिष्य आनी अपनी बोली में उस विषय को स्पष्ट रूप से ऐसे कोश के माध्यम से समझ लेते हैं। बृहत्कल्पभाष्य में एकार्थक कोश के गुण बन्धानुलोमता आदि बताये हैं । लेखक का एकार्थक सम्बन्धी ज्ञान जितना समृद्ध होगा, उसका रचनाकौशल भी उतना ही गम्भीर होगा, सौष्ठवपूर्ण होगा । “वचोविन्यासवैचित्र्य' भी इस ज्ञान का एक फलित है। प्राचीन काल में पर्यायवाची शब्दों द्वारा ही किसी पदार्थ के विभेद, गणना, लक्षण, निरूपण और परीक्षण किये जाते थे । उदाहरणार्थ, 'आभिणिबोहिय' शब्द के पर्यायवाची ईहा, अपोह, विमर्श, मार्गणा, गवेषणा, स्मृति, मति, प्रज्ञा आदि शब्दों के आधार पर आभिनिबोधिक ज्ञान के विभाग, लक्षण एवं अन्य विशेष विवरण हमें सहज ही उपलब्ध हो जाते है। आभिनिबोधिक या मतिज्ञान के इन विभिन्न पर्यायों के आधार पर ही जैन तार्किकों ने प्रमाणशास्त्र का निर्माण किया है । परवर्ती समय में रचित पारिभाषिक ग्रन्थ इन पर्यायवाची शब्दों के ही परिष्कृत रूप हैं। एकार्थवाची शब्दों के आधार पर हम किसी विषय का सर्वांगीण ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं। उदाहरणार्थ, अहिंसा शब्द के अन्तर्गत आए हुए ६० शब्दों के माध्यम से अहिंसा-साधना के मूलभूत उपाय, अहिंसा का स्वरूप तथा उसकी फलनिष्पत्ति को हम सूक्ष्म रूप से हृदयंगम कर सकते हैं। शील, संवर, गुप्ति, क्षांति, यतना, अप्रमाद आदि शब्द अहिंसा-साधना के उपायों के द्योतक हैं । दया, कान्ति, विरति, कल्याण, नन्दा, भद्रा, विभूति आदि शब्द उसके स्वरूप के वाचक हैं । निर्वाण, बोधि, समाधि, सिद्धावास, निर्वति आदि शब्द अहिंसा की फलनिष्पत्ति के वाचक हैं। प्रस्तुत एकार्थक शब्दकोष के अवलोकन से जैन दर्शन सम्बन्धी कई बातें स्पष्ट रूप से हमारे सामने उभर आती हैं, जो उसकी विशेषताओं का स्पष्ट निर्देश करती हैं । उदाहरणार्थ, "मोहणिज्जकम्म" के पर्यायों को लीजिये । इन पर्यायों में मात्र चारित्र मोहनीय के अंगों का निर्देश है। दर्शन मोहनीय कर्म का उल्लेख बिल्कुल नहीं हुआ है । इसके विपरीत पाली ग्रन्थों में जब मोह शब्द के पर्यायों को देखते हैं तो मात्र अज्ञान या अविद्या से सम्बन्धित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016050
Book TitleEkarthak kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages444
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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