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________________ आगम आगम विषय कोश-२ को पूर्ण करने वाले विद्यातिशय उपवर्णित हैं । (अतः सत्त्व स्वरचिंता, तत्रापि आदुपसर्गो वर्ण्यते।""उपसर्ग और धृति से सम्पन्न साधक ही इसका अध्ययन कर सकते विशेषात्यदार्थविशोधिर्भवति। (दशानि १८ चू) हैं।) छठे सत्यप्रवादपूर्व के अक्षरप्राभृत में 'आ ' उपसर्ग १३. दृष्टिवाद के पांच प्रस्थान प्रतिपादित है। आठवें कर्मप्रवाद पूर्व में अष्टांग महानिमित्त परिकम्मेहि य अत्था, सुत्तेहि य जे य सूइया तेसिं। के प्रसंग में स्वरविमर्श है। वहां भी 'आ' उपसर्ग वर्णित है। होति विभासा उवरिं, पुव्वगतं तेण बलियं तु॥ वह अपने अर्थ से युक्तिकृत पद के अर्थ का विशोधिकर है। दृष्टिवादः पंचप्रस्थानः, तद्यथा-परिकर्माणि उपसर्ग के प्रयोग से पदार्थ की विशोधि होती है। सूत्राणि पूर्वगतमनुयोगश्चूलिकाश्च। तत्र ये परिकर्मभिः ० नौवां-दसवां पूर्व सिद्धश्रेणिकाप्रभृतिभिः सूत्रैश्चाष्टाशीतिसंख्यैरा: सूचिता __णवमस्स पुव्वस्स"ततियं आयारवत्थू तत्थ स्तेषां सर्वेषामप्यन्येषां च उपरि पूर्वेषु विभाषा भवति, कालणाणं वणिज्जति। (निभा २८७३ की चू) अनेकप्रकारं ते तत्र भाष्यन्ते। तेन कारणेन पूर्वगत-सूत्रं ""नवम दसमा उ पुव्वा, अभिणवगहिया उ नासेज्जा।। बलिकम्। (व्यभा १८२७ वृ) "सागरसरिसं नवमं, अतिसयनयभंगगुविलत्ता॥ दृष्टिवाद के पांच प्रस्थान हैं-परिकर्म, सूत्र, पूर्वगत, ततोऽगीतार्थानामतिशयाकर्णनं मा भूत्। अनुयोग और चूलिका। (व्यभा १७३७, १७३८ वृ) ___ सिद्धश्रेणिका आदि सात परिकर्मों तथा ऋजुसूत्र आदि नौवें पूर्व की तृतीय आचारवस्तु में कालज्ञान वर्णित सर्व अट्ठासी सूत्रों द्वारा जो अर्थ सूचित हैं, उन सबकी तथा । अन्य अर्थों की पूर्वगत में विभाषा की गई है-अनेक प्रकारों से नये सीखे हुए नौवें एवं दसवें पूर्व का सतत स्मरण उनका निरूपण किया गया है, इसलिए पूर्वगत सूत्र बलवान है। (परावर्तन) आवश्यक है, अन्यथा वह विस्मृत हो जाता है। १४. चतुर्दशपूर्वी की विलक्षणताएं नौवां पूर्व और दसवां पूर्व-ये दोनों स्वयम्भूरमण समुद्र के ___..."चोइसपुव्वीणं अजिणाणं जिणसंकासाणं समान विशाल हैं । ये अनेक अतिशयों, नयों और विकल्पों के सव्वक्खरसन्निवाईणं जिणो विव अवितहं वागर- कारण गहन हैं। माणाणं"। (दशा ८ परि सू ९७) नयों और भंगों की बहुलता के कारण बहुत साधुओं चतुर्दशपूर्वी जिन नहीं होते हए भी जिन के समान के मध्य इनका परावर्तन दुष्कर है। अगीतार्थ उन अतिशयों होते हैं। वे सर्वाक्षरसन्निपाती-सब अक्षरों के संयोगों के ज्ञाता को न सुन सके-इस रूप में परावर्तन करना चाहिए। तथा श्रव्य अक्षरों के वक्ता और जिन भगवान के समान १६. सूत्र देवता- अधिष्ठित क्यों? अवितथ व्याकरण करने वाले होते हैं। सलक्खणमिदं सुत्तं, जेण सव्वण्णुभासितं। * चतुर्दशपूर्वी : अनेक लब्धियों से सम्पन्न द्र श्रीआको १ पूर्व सव्वं च लक्खणोवेयं, समधिटुंति देवया॥ १५. पूर्वज्ञान : छठा-आठवां पूर्व ___ (व्यभा ३०१९) छट्ठट्ठमपुव्वेसु, आउवसग्गो त्ति सव्वजुत्तिकओ। सूत्र सर्वज्ञभाषित है, इसलिए सर्वलक्षण सम्पन्न है। पयअत्थविसोहिकरो .......... ..... ........॥ लोक में लक्षण सम्पन्न सब वस्तुएं देवता द्वारा अधिष्ठित सच्चप्पवायपुव्वे अक्खरपाहुडे तत्रादुपसर्गों होती हैं-इस आधार पर कहा जा सकता है कि सूत्र वर्ण्यते। अट्ठमे कम्मप्पवायपुव्वे अटुंगं महानिमित्तं तत्थ देवताअधिष्ठित है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016049
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages732
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size17 MB
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